सुसनेर के सालरिया में शुरू होगा देश और प्रदेश का पहला गौ-अभयारण्य
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तीन चरण में होगा निर्माण, अभयारण्य में गोबर, गौ-मूत्र, पंचगव्य पर होगा अनुसंधान |
मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले की तहसील सुसनेर के ग्राम सालरिया में कामधेनु गौ-अभयारण्य इसी माह शुरू हो जायेगा। प्राचीन समय में गाय को प्राप्त सम्मान एवं गरिमा को ध्यान में रखते हुए अभयारण्य में भारतीय गौ-वंश की नस्लों के संरक्षण एवं संवर्धन के व्यापक इंतजाम किये जायेंगे। कामधेनु अभयारण्य भोपाल से लगभग 200 और उज्जैन से लगभग 114 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अभयारण्य के उत्तर में राजस्थान का झालावाड़ जिला, उत्तर-पूर्व में राजगढ़, पूर्व में सीहोर, दक्षिण में देवास और पश्चिम में उज्जैन, रतलाम एवं मंदसौर जिले रहेंगे।
अभयारण्य में गाय के गोबर और गौ-मूत्र से कीटनाशक का निर्माण, गौ-वंश के लिये चारागाहों का विकास, लावारिस और दान में प्राप्त और पुलिस द्वारा जप्त गायों के लिये आवास, आहार की सुनिश्चितता तथा गौ-वंश के निर्भय एवं स्वतंत्रत विचरण के लिये पर्याप्त व्यवस्था रहेगी। गौ-वंश के लिये प्राकृतिक और स्वाभाविक वातावरण का निर्माण भी अभयारण्य का प्रमुख लक्ष्य है।
मध्यप्रदेश सरकार की पहल पर शुरू होने जा रहे इस गौ-अभयारण्य में गाय से प्राप्त होने वाले गोबर, गौ-मूत्र, पंचगव्य आदि के इस्तेमाल पर शोध, अन्वेषण और अनुसंधान किया जायेगा। गाय के प्रति समाज की आस्था को देखते हुए अभयारण्य को सुंदर स्वरूप में विकसित किया जा रहा है। तीन चरण में इसका समग्र रूप से विकास करवाया जायेगा। विभिन्न विभाग यहाँ अपनी गतिविधियाँ संचालित करेंगे। अभयारण्य में गौ-वंश के लिये जल की पर्याप्त व्यवस्था रहेगी। इसके लिये तालाबों का निर्माण करवाया जायेगा। पशु-चारे के लिये मक्का तथा बरसीम की खेती होगी। वन विभाग बड़े पैमाने पर चारा उत्पादन की योजना चलायेगा। अभयारण्य की बाउण्ड्री वॉल के लिये खंतियाँ बनाई जायेंगी, जिस पर वन विभाग वृक्षारोपण करेगा। गायों के लिये बनाये जाने वाले शेड्स पर सोलर पेनल स्थापित किये जायेंगे, जिसके माध्यम से अभ्यारण्य में प्रकाश की व्यवस्था रहेगी।
ग्राम सालरिया की 472.63 हेक्टेयर भूमि पर बनने वाले इस अभयारण्य की कुल अनुमानित लागत डेढ़ करोड़ से अधिक आयेगी। यह राशि पहले चरण में अभयारण्य के अधोसंरचना विकास पर खर्च की जायेगी। अभयारण्य में गत वर्ष 2011-12 से विभिन्न निर्माण कार्य करवाये गये हैं। पहले चरण में लगभग 5 हजार गौ-वंश के रहने की व्यवस्था के लिये शेड-निर्माण, पशु अवरोधक खंती, चारा गोदाम, पानी की टंकी, कूप-निर्माण, पम्प-हाउस, सम्प वेल, पाइप-लाइन और कार्यालय आदि की व्यवस्था की गई है। भविष्य में प्रतिवर्ष एक हजार गौ-वंश के रहने के लिये शेड निर्मित होंगे।
अभयारण्य में प्रतिवर्ष 60 हजार हेक्टेयर भूमि पर उन्नत चारागाह विकसित किया जायेगा। चारागाह विकास और हरे चारे के उत्पादन का कार्य चरणबद्ध रूप से होगा। अभयारण्य में विद्युत की भी पर्याप्त व्यवस्था रहेगी। दूसरे चरण में जैविक खाद निर्माण, गौ-वंश में नस्ल-सुधार का कार्य और पंचगव्य एवं गौ-मूत्र से औषधि निर्माण जैसे महत्वपूर्ण कार्य होंगे। अपराम्परागत ऊर्जा स्रोतों जैसे गोबर गैस से विद्युत उत्पादन का कार्य भी इसी चरण में होगा। दीर्घजीवी और पक्षियों को आकर्षित करने वाले वृक्ष भी दूसरे चरण में लगाये जायेंगे। बड़े स्तर पर गाय के दूध से बनने वाले घी का निर्माण तथा उसके विपणन का कार्य भी यहाँ होगा।
तीसरे चरण में देश में उपलब्ध 34 गौ-वंशीय नस्लों के संरक्षण का कार्य होगा। पंजीकृत गौ-शालाओं के लिये विभिन्न प्रकार की जैविक खाद और गौ-मूत्र से बनने वाली औषधि के निर्माण, बेहतर पशु-पालन, चारागाह विकास आदि विषयों पर प्रशिक्षण की व्यवस्था की जायेगी।
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Thursday, 20 December 2012
शुरू होगा देश और प्रदेश का पहला गौ-अभयारण्य
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