गो सेवा के चमत्कार
दाना भगत
सौराष्ट्र गुजरात के गो सेवको में दाना भगत का नाम विशेष है. वे जीवन भर गायो का झुण्ड लेकर सौराष्ट्र के गाँव गाँव घुमते रहे और गो माता की जय जयकार करते रहे. लोग उन्हें घुमक्कड़ गोभक्त कहते थे
उनका जन्म विक्रम संवत १७८४ में सौराष्ट्र के अमरेली जिले के चालला नामक गाँव में हुआ था . वे जन्म से अंधे थे. प्रकृती ने उन्हें सुमधुर कंठ दिया था. उनके पिता गोपालन करते थे. बचपन में वे अपने पिता के साथ गायो को चराने जाते और पढ़ के नीचे बैठकर भजन कीर्तन करते. कभी कभी दोपहर के समय गाये भी उनके आस पास आकर बैठ जाती और भजन कीर्तन सुनती.
कहते है एक बार किसी संत पुरुष ने बालक दाना को गायो के बीच कीर्तन करते देखा वे कुछ समय वह रूक गए और भजन सुनने लगे. जब उन्हें पता चला की बालक देख नहीं पता तब वे दयार्द्र हो गए उन्होंने बालक के पिता को अपने पास बुलाया और एक गाय की और संकेत करते हुए उसे दुह लेन का आदेश दिया. फिर महात्माजी उस दूध से बालक दाना की आखे धोने लगे. कुछ ही क्षणों में बालक चिल्ला उठा - मै देख सकता हूँ. मुझे सब कुछ दिखाई देता है.
बस उस दिन से दाना ने अपना जीवन गो सेवा के लिए समर्पित कर दिया. गो माता की सतत सेवा और गो दुग्ध सतत सेवन से उन्हें अलौकिक सिद्धि प्राप्त होने लगी.
एक बार दाना भगत गयो के साथ गिरनार पर्वत के आस-पास घूम रहे थे. गाये चरती हुई ऐसे स्थल पर पहुच गयी जहा पानी का आभाव था. वे पाने के लिए भटकने लगे. कुछ लोगो ने बताया यहाँ पानी मिलना कठिन है आप गायो को लेकर शीघ्र ही पर्वतीय प्रदेश के बहार निकल जाए, नहीं तो ये प्यास से मर जायेगे.
वे पानी की खोज करते रहे लोग भी कुतूहल वश उनके साथ चलने लगे. कुछ देर बाद भगतजी एक बड़े पत्थर के पास आकर रूक गए और लोगो से कहने लगे - आप लोग गो माता की जय बोलकर यह पत्थर हटा दे. इसके नीचे पानी का सोता है
लोगो ने पत्थर हटाया तो उस गड्ढे में धीरे-धीरे पानी ऊपर आने लगा. भगतजी ने गयो को पाने पिलाया और दुसरे गाँव की और चल पड़े.
गिरनार पर्वत के जंगलो में आज भी वह सोता पानी से भरा पड़ा है और दाना भगत की गो सेवा की साक्षी दे रहा है.
गो सेवा से उन्हें कई प्रकार की सिद्धिय परत थे और अनेको चमत्कार की घटनाएं इनके जीवन से judee थे. सौराष्ट्र में आज भी गोसेवक दाना भगत का नाम बड़ी ही श्रद्धा से लिया जाता है.
दाना भगत
सौराष्ट्र गुजरात के गो सेवको में दाना भगत का नाम विशेष है. वे जीवन भर गायो का झुण्ड लेकर सौराष्ट्र के गाँव गाँव घुमते रहे और गो माता की जय जयकार करते रहे. लोग उन्हें घुमक्कड़ गोभक्त कहते थे
उनका जन्म विक्रम संवत १७८४ में सौराष्ट्र के अमरेली जिले के चालला नामक गाँव में हुआ था . वे जन्म से अंधे थे. प्रकृती ने उन्हें सुमधुर कंठ दिया था. उनके पिता गोपालन करते थे. बचपन में वे अपने पिता के साथ गायो को चराने जाते और पढ़ के नीचे बैठकर भजन कीर्तन करते. कभी कभी दोपहर के समय गाये भी उनके आस पास आकर बैठ जाती और भजन कीर्तन सुनती.
कहते है एक बार किसी संत पुरुष ने बालक दाना को गायो के बीच कीर्तन करते देखा वे कुछ समय वह रूक गए और भजन सुनने लगे. जब उन्हें पता चला की बालक देख नहीं पता तब वे दयार्द्र हो गए उन्होंने बालक के पिता को अपने पास बुलाया और एक गाय की और संकेत करते हुए उसे दुह लेन का आदेश दिया. फिर महात्माजी उस दूध से बालक दाना की आखे धोने लगे. कुछ ही क्षणों में बालक चिल्ला उठा - मै देख सकता हूँ. मुझे सब कुछ दिखाई देता है.
बस उस दिन से दाना ने अपना जीवन गो सेवा के लिए समर्पित कर दिया. गो माता की सतत सेवा और गो दुग्ध सतत सेवन से उन्हें अलौकिक सिद्धि प्राप्त होने लगी.
एक बार दाना भगत गयो के साथ गिरनार पर्वत के आस-पास घूम रहे थे. गाये चरती हुई ऐसे स्थल पर पहुच गयी जहा पानी का आभाव था. वे पाने के लिए भटकने लगे. कुछ लोगो ने बताया यहाँ पानी मिलना कठिन है आप गायो को लेकर शीघ्र ही पर्वतीय प्रदेश के बहार निकल जाए, नहीं तो ये प्यास से मर जायेगे.
वे पानी की खोज करते रहे लोग भी कुतूहल वश उनके साथ चलने लगे. कुछ देर बाद भगतजी एक बड़े पत्थर के पास आकर रूक गए और लोगो से कहने लगे - आप लोग गो माता की जय बोलकर यह पत्थर हटा दे. इसके नीचे पानी का सोता है
लोगो ने पत्थर हटाया तो उस गड्ढे में धीरे-धीरे पानी ऊपर आने लगा. भगतजी ने गयो को पाने पिलाया और दुसरे गाँव की और चल पड़े.
गिरनार पर्वत के जंगलो में आज भी वह सोता पानी से भरा पड़ा है और दाना भगत की गो सेवा की साक्षी दे रहा है.
गो सेवा से उन्हें कई प्रकार की सिद्धिय परत थे और अनेको चमत्कार की घटनाएं इनके जीवन से judee थे. सौराष्ट्र में आज भी गोसेवक दाना भगत का नाम बड़ी ही श्रद्धा से लिया जाता है.
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