आज के भारत में लगभग 30 करोड़ चूल्हे जलते हैं। जिसमें से 20 करोड चूल्हे तो गाँव में जलते हैं। जहां ज़्यादातर चूल्हे, चूल्हे नहीं हो कर अग्निहोत्र हैं।
अंतर इतना ही हो गया है की सरकार गायों को कटवाकर सूअरों को गाँव में पलवा रही है। ज़्यादातर चूल्हों में इन्ही सूअर से संकरीत काऊ जो वास्तव में जरसी, हलिस्टियन, फ्रीजियन या क्रास है, का गोबर जलता है जो प्रदूषण फैलती है।
प्रश्न है की एक तरफ सरकार गाय कटवा रही है तो दूसरी तरफ प्रदूषण फैलने का राग अलाप रही है। प्रदूषण फैलने का इतना ही डर है तो गाय क्यों कटवा रही है सरकार ?
जरसी, हलिस्टियन, फ्रीजियन या क्रास के गोबर से प्रदूषण फैलता है जबकि भारतिए गोवंश के गोबर जलाने से प्रोपेलीन डाइ ऑक्साइड नमक गैस बनती है जो वर्षा कराने में सहायक है।
अर्थात आज जो प्रदूषित वायु बढ़ रहा है उसके पीछे सरकार की गोहत्या नीति ही कार्य कर रही है।
परिणाम के कुछ नमूने इस प्रकार हैं – संसार में 70 लाख लोग हर साल प्रदूषित वायु में सांस लेने के कारण मरते हैं; 2016 में घर के बाहर की हवा में प्रदूषित वायु होने के कारण 42 लाख लोगों की मौत हुई; 38 लाख लोगों की मौत घर से निकले धुओं व प्रदूषणकारी तकनीकों के कारण हुई।
कहा जा रहा है कि वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में से 90 फीसद से अधिक निम्न और मध्यम आय वर्ग के लोग होते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के ये नवीनतम आंकड़े कम-से-कम एक बात तो एकदम ही सपष्ट करते हैं कि हमारी हवा बेहद जहरीली हो गई है।
एक रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी भू-मध्य सागर के क्षेत्र और दक्षिण पूर्व एशिया की हवा सर्वाधिक जहरीली है।
विश्व स्वास्य संगठन की न्यूनतम निर्धारित सीमा की तुलना में इन क्षेत्रों में प्रदूषण 5 गुणा अधिक है।
वायु प्रदूषण में घरों में होने वाले प्रदूषण का हिस्सा काफी बड़ा है। इस प्रदूषण का सर्वाधिक खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ता है।
यूरोप के लोग अधिकांश हिस्से वायु प्रदूषण की इस मार से बच जाते हैं।
आज संसार में तीस करोड़ लोग अपने घरों में केरोसिन या लकड़ी या फिर जरसी, हलिस्टियन, फ्रीजियन, क्रास या भैंस के गोबर या फिर कोयला का ईधन के रूप में प्रयोग करते हैं।
हमारे गांवों में खाना पकाने व अन्य कार्य के लिए ईधन के रूप में इन वस्तुओं का प्रयोग काफी ज्यादा धुआं पैदा करता है। घर के अंदर तैयार होने वाले इस प्रदूषित वायु की वजह से लोगों में की तरह की बीमारियों को जन्म देता है, जिसकी वजह से उनकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
पांच साल से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया के कारण होने वाली मौत का 50 फीसद पार्टिकुलेट पदार्थो के कारण होती है, जो उनके शरीर में प्रदूषित हवा के सांस लेने के कारण जाता है। निमोनिया और कई अन्य बीमारियों के अलावा पक्षाघात, फेफड़े का कैंसर, दमा और हृदय रोग वायु प्रदूषण के कारण होता है।
शहरों में जो वायु प्रदूषण होता है, उसका बहुत बड़ा स्रोत वहां लगे प्रदूषण फैलाने वाले कल-कारखाने और मोटर वाहन होते हैं।
आंकड़ों की मानें तो विश्व के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 14 भारत के हैं। कानपुर इस तालिका में सबसे ऊपर है।
तालिका में वाराणसी, लखनऊ और आगरा, बिहार के गया, पटना, मुजफ्फरपुर, हरियाणा के फरीदाबाद, गुड़गांव और राजस्थान के जयपुर और जोधपुर शामिल हैं।
सूची में बहुत सारे शहर ऐसे हैं, जो औद्योगिक मानिचत्र में कहीं नहीं हैं। तो फिर सवाल उठता है कि इनके ज्यादा प्रदूषित होने के क्या कारण हैं?
गया, पटना, मुजफ्फरपुर, कानपुर, वाराणसी और लखनऊ जैसे शहरों में पार्टिकुलेट पदार्थ 2.5 (पीएम2.5) का सामान्य से काफी अधिक होना आश्चर्य पैदा करता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि गांगेय घाटी का संपूर्ण क्षेत्र प्रदूषण के लिहाज से सर्वाधिक खतरनाक क्षेत्र बनकर उभर रहा है। इस क्षेत्र का प्रदूषण उसका अपना नहीं होकर उत्तर पश्चिम से चलने वाली हवा द्वारा इन क्षेत्रों से लाई जाती है। साल में ज्यादा समय तक यही हवा बहती है।
उत्तर में हिमालय और दक्षिण में विंध्य पर्वत होने के कारण ये हवा गांगेय घाटी से बाहर नहीं निकल पाती है। पूरे क्षेत्र के जमीन से घिरे होने के कारण यह प्रदूषित हवा यहीं रहती है।
फिर स्थानीय रूप से पैदा होने वाले धुआं व अन्य स्रेतों से होने वाले वायु प्रदूषण की स्थिति को और बिगाड़ देते हैं। पूर्वाचल का यही वह इलाका है, जो आर्थिक रूप से बदहाल भी है और प्रदूषण की मार भी इसे ही झेलनी पड़ रही है।
इसीलिए सरकार को चाहिए कि वह भारतीय गोवंश के गोमय क्षमता को समझे ओर गोबर से चलने वाले चूल्हे पर समाप्त करने को छोड़ कर भारतीय गोवंश पालन शुरू करे। तब कहीं जाकर भारत से वायु प्रदूषण समाप्त हो सकेगा।
30 करोड़ घरों में एल॰पी॰जी॰ नहीं, देशी गोवंश चाहिए।
अंतर इतना ही हो गया है की सरकार गायों को कटवाकर सूअरों को गाँव में पलवा रही है। ज़्यादातर चूल्हों में इन्ही सूअर से संकरीत काऊ जो वास्तव में जरसी, हलिस्टियन, फ्रीजियन या क्रास है, का गोबर जलता है जो प्रदूषण फैलती है।
प्रश्न है की एक तरफ सरकार गाय कटवा रही है तो दूसरी तरफ प्रदूषण फैलने का राग अलाप रही है। प्रदूषण फैलने का इतना ही डर है तो गाय क्यों कटवा रही है सरकार ?
जरसी, हलिस्टियन, फ्रीजियन या क्रास के गोबर से प्रदूषण फैलता है जबकि भारतिए गोवंश के गोबर जलाने से प्रोपेलीन डाइ ऑक्साइड नमक गैस बनती है जो वर्षा कराने में सहायक है।
अर्थात आज जो प्रदूषित वायु बढ़ रहा है उसके पीछे सरकार की गोहत्या नीति ही कार्य कर रही है।
परिणाम के कुछ नमूने इस प्रकार हैं – संसार में 70 लाख लोग हर साल प्रदूषित वायु में सांस लेने के कारण मरते हैं; 2016 में घर के बाहर की हवा में प्रदूषित वायु होने के कारण 42 लाख लोगों की मौत हुई; 38 लाख लोगों की मौत घर से निकले धुओं व प्रदूषणकारी तकनीकों के कारण हुई।
कहा जा रहा है कि वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में से 90 फीसद से अधिक निम्न और मध्यम आय वर्ग के लोग होते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के ये नवीनतम आंकड़े कम-से-कम एक बात तो एकदम ही सपष्ट करते हैं कि हमारी हवा बेहद जहरीली हो गई है।
एक रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी भू-मध्य सागर के क्षेत्र और दक्षिण पूर्व एशिया की हवा सर्वाधिक जहरीली है।
विश्व स्वास्य संगठन की न्यूनतम निर्धारित सीमा की तुलना में इन क्षेत्रों में प्रदूषण 5 गुणा अधिक है।
वायु प्रदूषण में घरों में होने वाले प्रदूषण का हिस्सा काफी बड़ा है। इस प्रदूषण का सर्वाधिक खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ता है।
यूरोप के लोग अधिकांश हिस्से वायु प्रदूषण की इस मार से बच जाते हैं।
आज संसार में तीस करोड़ लोग अपने घरों में केरोसिन या लकड़ी या फिर जरसी, हलिस्टियन, फ्रीजियन, क्रास या भैंस के गोबर या फिर कोयला का ईधन के रूप में प्रयोग करते हैं।
हमारे गांवों में खाना पकाने व अन्य कार्य के लिए ईधन के रूप में इन वस्तुओं का प्रयोग काफी ज्यादा धुआं पैदा करता है। घर के अंदर तैयार होने वाले इस प्रदूषित वायु की वजह से लोगों में की तरह की बीमारियों को जन्म देता है, जिसकी वजह से उनकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
पांच साल से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया के कारण होने वाली मौत का 50 फीसद पार्टिकुलेट पदार्थो के कारण होती है, जो उनके शरीर में प्रदूषित हवा के सांस लेने के कारण जाता है। निमोनिया और कई अन्य बीमारियों के अलावा पक्षाघात, फेफड़े का कैंसर, दमा और हृदय रोग वायु प्रदूषण के कारण होता है।
शहरों में जो वायु प्रदूषण होता है, उसका बहुत बड़ा स्रोत वहां लगे प्रदूषण फैलाने वाले कल-कारखाने और मोटर वाहन होते हैं।
आंकड़ों की मानें तो विश्व के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 14 भारत के हैं। कानपुर इस तालिका में सबसे ऊपर है।
तालिका में वाराणसी, लखनऊ और आगरा, बिहार के गया, पटना, मुजफ्फरपुर, हरियाणा के फरीदाबाद, गुड़गांव और राजस्थान के जयपुर और जोधपुर शामिल हैं।
सूची में बहुत सारे शहर ऐसे हैं, जो औद्योगिक मानिचत्र में कहीं नहीं हैं। तो फिर सवाल उठता है कि इनके ज्यादा प्रदूषित होने के क्या कारण हैं?
गया, पटना, मुजफ्फरपुर, कानपुर, वाराणसी और लखनऊ जैसे शहरों में पार्टिकुलेट पदार्थ 2.5 (पीएम2.5) का सामान्य से काफी अधिक होना आश्चर्य पैदा करता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि गांगेय घाटी का संपूर्ण क्षेत्र प्रदूषण के लिहाज से सर्वाधिक खतरनाक क्षेत्र बनकर उभर रहा है। इस क्षेत्र का प्रदूषण उसका अपना नहीं होकर उत्तर पश्चिम से चलने वाली हवा द्वारा इन क्षेत्रों से लाई जाती है। साल में ज्यादा समय तक यही हवा बहती है।
उत्तर में हिमालय और दक्षिण में विंध्य पर्वत होने के कारण ये हवा गांगेय घाटी से बाहर नहीं निकल पाती है। पूरे क्षेत्र के जमीन से घिरे होने के कारण यह प्रदूषित हवा यहीं रहती है।
फिर स्थानीय रूप से पैदा होने वाले धुआं व अन्य स्रेतों से होने वाले वायु प्रदूषण की स्थिति को और बिगाड़ देते हैं। पूर्वाचल का यही वह इलाका है, जो आर्थिक रूप से बदहाल भी है और प्रदूषण की मार भी इसे ही झेलनी पड़ रही है।
इसीलिए सरकार को चाहिए कि वह भारतीय गोवंश के गोमय क्षमता को समझे ओर गोबर से चलने वाले चूल्हे पर समाप्त करने को छोड़ कर भारतीय गोवंश पालन शुरू करे। तब कहीं जाकर भारत से वायु प्रदूषण समाप्त हो सकेगा।
30 करोड़ घरों में एल॰पी॰जी॰ नहीं, देशी गोवंश चाहिए।
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