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वर्तमानकाल में भौतिकता की और प्रवृत मानव यदपि गो-सेवा की महिमा को नहीं समझते, तथापि इधर जो अनुभव हुए है,
उनके आधार पर गौके शरीर में सभी देवताओं का निवास
मानना पड़ता है |
आयुर्वेदप्रवीण वैधराज लक्ष्मणसिंह जी की धर्मपत्नी श्रीमती गंगाकौर का
देहावसान ५ अक्टूबर १९६० को हुआ | देहावसान के छ: मास पूर्व इन्होने वैधराज
को बता दिया की यदपि शारीरिक रूप
से मैं पूर्ण स्वास्थ्य हूँ, तथापि मेरा अंतिम समय निकट है | वैसे तो
वैधराज परम धार्मिक हैं, परन्तु पत्नी की इस बात पर वे पूर्ण विश्वाश नहीं
कर पाये |
मृत्यु के दो मास पूर्व श्रीमति गंगाकौर ने पुन: अपनी मृत्यु-तिथि बतलाई और
स्वयं पूर्णत: हरिभक्त और गौ-सेवा में लग गयी | २३ सितम्बर ६० को किसी बात
के प्रसन्ग में यही बात फिर दोहराई
गयी | मृत्यु के दो दिन पूर्व ही ॐ का पाठ चलता रहा |
निश्चित समय पर श्रीमती गंगाकौर चेतनाशून्य हो गयी | वैध जी ने कस्तुरी आदि
औषधियों की सहायता से उन्हें पुन: चैतन्य-अवस्था में लाकर पुछा - 'देवी !
योगी यतियों के लिए भी दुर्बोध
मृत्यु के आगमन का पूर्वभास तुम्हे कैसे हुआ ?'
श्रीमति गंगाकौर ने ने उत्तर दिया -'यह सब गौ-सेवा का प्रताप है | मुझे ऐसा
आभास हो रहा है की मैं सीढ़ियों पर जा रही हूँ | कुते और कुत्तों जैसे
प्राणी मुझ पर झपट रहे है और गौ-समुदाय
घेरा बना कर मेरी रक्षा कर रहा है | एक प्राणी मुझे कह रहा है की गाय तेरी
रक्षा कर रही है, इसलिए तू जा और तेरे पतिकी शंका-निवारण कर आ |'
ऐसा कह कर उन्होंने आथणी (दही ज़माने की हांडी) मंगवायी और सारा दही
गौ-पुत्री (वत्सा) को खिलाने का आदेश दिया | फिर उन्होंने कहाँ की मेरी
माताजी आयेंगी और विकल होकर रोयेंगी |
आप उन्हें रोने-कलपने से मना कर दीजिये और कहिये की वे 'राम' या 'ॐ' का नाम
का पाठ करे |
गाय का दही खाते-खाते वे चिर-निंद्रा में लीं हो गयी |
गोसेवा के चमत्कार (सच्ची घटनाएँ), संपादक - हनुमानप्रसाद पोद्दार, पुस्तक
कोड ६५१, गीताप्रेस गोरखपुर, भारत
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