Friday 17 August 2018

numerology

संस्कृत की अज्ञानता के कारण यह नाश हुआ 


प्रश्न ,,,  अंक ज्योतिष क्या है ? 
रत्नेश कुमार पटेल, उप निरीक्षक पुलिस, जबलपुर । म , प्र ,

उत्तर ==  "ज्योतिषं चक्षुरुच्यते" वेद के छै अंगों में ज्योतिष को चक्षु अर्थात नेत्र कहा जाता है । स्वर्गादि लोकों के सुखों की प्राप्ति से लेकर मृत्युलोक के भौतिक सुखों की प्राप्ति तक के उपाय वेदों में लिखे हुए हैं ।  
ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य के लिए विविध प्रकार के यज्ञ अनुष्ठान का विधान किया गया है । पितरों के निमित्त श्राद्धों का विधान है । गर्भाधान से लेकर मृत्यु पर्यंत मनुष्यों के संस्कारों का विधान है 

 इन सभी प्रकार के सत्कर्मों को किस काल  ( समय ) में करना चाहिए ।इसका निर्णय ज्योतिष् शास्त्र के द्वारा ही होता है । 

जैसे - कोई अन्धे स्त्री पुरुष संसार के कार्यों को नेत्रवाले स्त्री पुरुष के समान शीघ्र और व्यवस्थित नहीं कर सकते हैं ।उसी प्रकार  ज्योतिष शास्त्र के बताए हुए मुहूर्त के बिना तथा बताई गई विधि के बिना किए गए धार्मिक कर्म , कामनापूर्ति करनेवाले कर्म समय पर पूर्णफल नहीं देते हैं । 
अब ज्योतिष् शास्त्र का दूसरा स्वरूप देखिए ।

भागवत के 5 वें स्कन्ध के 22 वें अध्याय के दूसरे गद्य में शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को बताया है कि 

"यथा कुलालचक्रेण भ्रमता सह भ्रमतां तदाश्रयाणां पिपीलिकादीनां गतिरन्यैव प्रदेशान्तरेष्वप्युपलभ्यमानत्वात् । 
एवं 
नक्षत्रराशिभिरुपलक्षितेन कालचक्रेण ध्रुवं मेरुं च प्रदक्षिणे परिधावता सह परिधावमानानां तदाश्रयाणां सूर्यादीनां ग्रहाणां गतिरन्यैव नक्षत्रान्तरे राश्यन्तरे चोपलभ्यमानत्वात् ।। 

जैसे चलते हुए कुम्हार के चक्र में बैठे हुए चीटीं आदि जीव  चक्र के साथ ही घूमते हैंइसी प्रकार घूमते हुए काल चक्र में बैठे हुए सभी जीव, ध्रुव स्थान से लेकर सुमेरु पर्वत की परिक्रमा लगाते हुए सूर्यादि ग्रहों के राशि और नक्षत्र में आने से रात दिन,पक्ष,वर्ष, ऋतु आदि सबकुछ परिवर्तित होता रहता है । 

सूर्य और चन्द्रमा की गति से ही काल की गणना होती है । नक्षत्र और राशियों में ग्रहों के प्रवेश से सभी जीवों की गति का आयु सीमा का निर्णय होता है । 

बालक बालिका का जन्म, नक्षत्र,राशि और ग्रहों की गति काल में ही होता है ।  जैसे काल में जन्म हुआ होगा,उस समय के नक्षत्र और ग्रहों का प्रभाव बालक के शरीर और मन पर पड़ता है । साथ साथ प्रारब्ध कर्मों का भोग भी होता है । 

वेद में बताए गए उपायों द्वारा उस काल के दुष्प्रभाव को भी कम किया जा सकता है । भृगु संहिता ,नारदसंहिता आदि में तो जन्मकाल से बालक के पूर्व जन्म तक का ज्ञान बताया गया है ।  

"सूर्यसिद्धान्त" ग्रंथ के अनुसार सटीक गणित हो जाए तो बालक के स्वभाव, प्रभाव के साथ साथ मृत्यु तिथि भी बताई जा सकती है ।

  "टी वी में बैठे हुए ज्योतिषी तो उतने ही घोर अज्ञानी होते हैंजितने कि पूंछनेवाले । उनसे कोई नहीं पूंछता है कि कबूतर,चींटी,मछली आदि को दाना खिलाने का उपाय किस शास्त्र में लिखा है । इनके विषय में तो इतना ही समझिए कि जहां दुखी और लोभी लोग रहते हैं वहां पाखण्डी लोग भूंखे नहीं मरते हैं ।

हमारे भारत में अंग्रेजों के राज्य के बाद भारतीय दार्शिनिकों को अंग्रेज दार्शिनिक के उदाहरण देने में अधिक सम्मान मिलने लगा था । जब कि अंग्रेज दार्शिनिक भारतीय दर्शन गीता उपनिषद आदि को ही पढ़कर अपने देशों में आदर के पात्र बने थे । 

जब कि विदेशी दार्शिनिक तो आद्यशंकराचार्य,रामानुजाचार्य,वल्लभाचार्य,मध्वाचार्य आदि दार्शिनिकों के सामने कुछ भी नहीं थे ।नगण्य थे ।किंतु सम्मान के लोभ से रजनीश,कृष्णामूर्ति आदि बुद्धिमानों ने भी लाओत्से आदि का उदाहरण देकर  खूब धन और विषय सुख लूटा ।

हमारे यहां के विद्वान भी इसी लोलुपता में फंस गए । कीरो के द्वारा लिखे गए अंक ज्योतिष को आधार बना कर भारत के कुछ बुद्धिमानों ने अपनी रोजी रोटी चला ली ।

 माता पिता के द्वारा अपनी इच्छा से रखे हुए नाम के अक्षरों की गणना करके गुणा भाग करके शेष बचे शून्य और अंकों से व्यक्ति को कुछ मनोविज्ञान का सहारा लेकर बताया जाता है ।लेकिन वह भी पूर्ण सटीक नहीं बैठता है । 

बालक के जन्म नक्षत्र के अनुसार रखे हुए नाम से जो भविष्य और उपाय बताए जा सकते हैं,वह अंक गणित से नहीं । 

इसी प्रकार गरुड़ पुराण में लिखे गए हस्तरेखा ज्योतिष से जो जाना जा सकता है,वह किसी और के द्वारा लिखे हस्तविज्ञान से नहीं ।

जब से  सभी प्रकार के लोग संस्कृतभाषा से अनभिज्ञ साधारण मनुष्य धर्म की बात बताने लगे हैं,तभी से भारतीयों में शास्त्रों और विद्वान ब्राह्मणों में श्रद्धा और विश्वास का नाश हुआ है । इसीलिए सभी दुखी हैं और ठगे जा रहे हैं ।
राधे राधे ।
-आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, श्रीधाम वृन्दाबन 


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