Thursday 16 August 2018

chirchita


अपामार्ग या चिरचिटा
Prickly Chalf flower

परिचय :
अपामार्ग का पौधा भारत के सभी सूखे क्षेत्रों में उत्पन्न होता है। यह गांवों में अधिक मिलता है। खेतों के आसपास घास के साथ आमतौर पाया जाता है। अपामार्ग की ऊंचाई लगभग 60 से 120 सेमी होती है।
 आमतौर पर लाल और सफेद दो प्रकार के अपामार्ग देखने को मिलते हैं। सफेद अपामार्ग के डंठल व पत्ते हरे रंग के, भूरे और सफेद रंग के दाग युक्त होते हैं। इसके अलावा फल चपटे होते हैं, 
जबकि लाल अपामार्ग का डंठल लाल रंग का और पत्तों पर लाल-लाल रंग के दाग होते हैं। इसके फल चपटे और कुछ गोल होते हैं। इस पर बीज नुकीले कांटे के समान लगते है। 
दोनों प्रकार के अपामार्ग के गुणों में समानता होती है। फिर भी सफेद अपामार्ग श्रेष्ठ माना जाता है। इनके पत्ते गोलाई लिए हुए 1 से 5 इंच लंबे होते हैं। चौड़ाई आधे इंच से ढाई इंच तक होती है। पुष्प मंजरी की लंबाई लगभग एक फुट होती है, जिस पर फूल लगते हैं, फल शीतकाल में लगते हैं और गर्मी में पककर सूख जाते हैं। इनमें से चावल के दानों के समान बीज निकलते हैं। इसका पौधा वर्षा ऋतु में पैदा होकर गर्मी में सूख जाता है।
विभिन्न भाषाओं में नाम
संस्कृत किणिही, मयूरक, खरमंजरी, अध:शल्य, मर्कटी, दुर्ग्रहा, शिखरी, अपामार्ग। 
हिंदी चिरचिटा, चिचड़ा, ओंगा चिचरी, लटजीरा।
मराठी अघाड़ा, अघेड़ा।
गुजराती अघेड़ों।
अरबी चिचिरा अल्कुम।
तैलगु दुच्चीणिके।
फारसी खारेवाजगून
बंगाली . अपांग।
अंग्रेजी प्रिकली चाफ फ्लावर।
लैटिन एचिरैन्थस ऐस्पेरा।
गुण :

आयुर्वेदिक मतानुसार अपामार्ग तीखा, कडुवा तथा प्रकृति में गर्म होता है। यह पाचनशक्तिवर्द्धक, दस्तावर (दस्त लाने वाला), रुचिकारक, दर्द-निवारक, विष, कृमि व पथरी नाशक, रक्तशोधक (खून को साफ करने वाला), बुखारनाशक, श्वास रोग नाशक, भूख को नियंत्रित करने वाला होता है तथा सुखपूर्वक प्रसव हेतु एवं गर्भधारण में उपयोगी है।
रासायनिक संगठन :
अपामार्ग में 30 प्रतिशत पोटाश, 13 प्रतिशत चूना, 7 प्रतिशत सोरा, 4 प्रतिशत लौह तत्व, दो प्रतिशत नमक एवं दो प्रतिशत गंधक पाया गया है। इसके पत्तों की अपेक्षा जड़ की राख में ये तत्त्व अधिकता से मिलते हैं।
मात्रा :
अपामार्ग के पत्ते, जड़ व बीज का चूर्ण 3 से 5 ग्राम। पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर। भस्म आधे से एक ग्राम
विभिन्न रोगों में सहायक :
1. विष पर :
जानवरों के काटने व सांप, बिच्छू, जहरीले कीड़ों के काटे स्थान पर अपामार्ग के पत्तों का ताजा रस लगाने और पत्तों का रस 2 चम्मच की मात्रा में 2 बार पिलाने से विष का असर तुरंत घट जाता है और जलन तथा दर्द में आराम मिलता है। इसके पत्तों की पिसी हुई लुगदी को दंश के स्थान पर पट्टी से बांध देने से सूजन नहीं आती और दर्द दूर हो जाता है। सूजन चढ़ चुकी हो तो शीघ्र ही उतर जाती है
ततैया, बिच्छू तथा अन्य जहरीले कीड़ों के दंश पर इसके पत्ते का रस लगा देने से जहर उतर जाता है। काटे स्थान पर बाद में 8-10 पत्तों को पीसकर लुगदी बांध देते हैं। इससे व्रण (घाव) नहीं होता है।
2. दांतों का दर्द :
अपामार्ग की शाखा (डाली) से दातुन करने पर कभी-कभी होने वाले तेज दर्द खत्म हो जाते हैं तथा मसूढ़ों से खून का आना बंद हो जाता है।
अपामार्ग के फूलों की मंजरी को पीसकर नियमित रूप से दांतों पर मलकर मंजन करने से दांत मजबूत हो जाते हैं। पत्तों के रस को दांतों के दर्द वाले स्थान पर लगाने से दर्द में राहत मिलती है। तने या जड़ की दातुन करने से भी दांत मजबूत होते हैं एवं मुंह की दुर्गन्ध नष्ट होती है।
इसके 2-3 पत्तों के रस में रूई का फोया बनाकर दांतों में लगाने से दांतों के दर्द में लाभ पहुंचता है तथा पुरानी से पुरानी गुहा को भरने में मदद करता है।
अपामार्ग की ताजी जड़ से प्रतिदिन दातून करने से दांत मोती की तरह चमकने लगते हैं। इससे दांतों का दर्द, दांतों का हिलना, मसूढ़ों की कमजोरी तथा मुंह की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।
3. प्रसव सुगमता से होना :
प्रसव में ज्यादा विलम्ब हो रहा हो और असहनीय पीड़ा महसूस हो रही हो, तो रविवार या पुष्य नक्षत्र वाले दिन जड़ सहित उखाड़ी सफेद अपामार्ग की जड़ काले कपड़े में बांधकर प्रसूता के गले में बांधने या कमर में बांधने से शीघ्र प्रसव हो जाता है। प्रसव के तुरंत बाद जड़ शरीर से अलग कर देनी चाहिए, अन्यथा गर्भाशय भी बाहर निकल सकता है। जड़ को पीसकर पेड़ू पर लेप लगाने से भी यही लाभ मिलता है। लाभ होने के बाद लेप पानी से साफ कर दें।
चिरचिटा (अपामार्ग) की जड़ को स्त्री की योनि में रखने से बच्चा आसानी से पैदा होता है।
पाठा, कलिहारी, अडूसा, अपामार्ग इनमें से किसी एक औषधि की जड़ के तैयार लेप को नाभि, नाभि के नीचे के हिस्से पर लेप करने से प्रसव सुखपूर्वक होता है। प्रसव पीड़ा प्रारम्भ होने से पहले अपामार्ग के जड़ को एक धागे में बांधकर कमर में बांधने से प्रसव सुखपूर्वक होता है, परंतु प्रसव होते ही उसे तुरंत हटा लेना चाहिए।
अपामार्ग की जड़ तथा कलिहारी की जड़ को लेकर एक पोटली मे रखें। फिर स्त्री की कमर से पोटली को बांध दें। प्रसव आसानी से हो जाता है। 
4. स्वप्नदोष : अपामार्ग की जड़ का चूर्ण और मिश्री बराबर की मात्रा में पीसकर रख लें। 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार 1-2 हफ्ते तक सेवन करें।
5. मुंह के छाले : अपामार्ग के पत्तों का रस छालों पर लगाएं।
6. शीघ्रपतन : अपामार्ग की जड़ को अच्छी तरह धोकर सुखा लें। इसका चूर्ण बनाकर 2 चम्मच की मात्रा में लेकर 1 चम्मच शहद मिला लें। इसे 1 कप ठंडे दूध के साथ नियमित रूप से कुछ हफ्तों तक सेवन करने से वीर्य बढ़ता है।
7. संतान प्राप्ति के लिए : अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में दूध के साथ मासिक-स्राव के बाद नियमित रूप से 21 दिन तक सेवन करने से गर्मधारण होता है। दूसरे प्रयोग के रूप में ताजे पत्तों के 2 चम्मच रस को 1 कप दूध के साथ मासिक-स्राव के बाद नियमित सेवन से भी गर्भ स्थिति की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
8. मोटापा : अधिक भोजन करने के कारण जिनका वजन बढ़ रहा हो, उन्हें भूख कम करने के लिए अपामार्ग के बीजों को चावलों के समान भात या खीर बनाकर नियमित सेवन करना चाहिए। इसके प्रयोग से शरीर की चर्बी धीरे-धीरे घटने भी लगेगी।
9. कमजोरी : अपामार्ग के बीजों को भूनकर इसमें बराबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर पीस लें। 1 कप दूध के साथ 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित सेवन करने से शरीर में पुष्टता आती है।
10. सिर में दर्द : अपामार्ग की जड़ को पानी में घिसकर बनाए लेप को मस्तक पर लगाने से सिर दर्द दूर होता है।
11. मलेरिया से बचाव : अपामार्ग के पत्ते और कालीमिर्च बराबर की मात्रा में लेकर पीस लें, फिर इसमें थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर मटर के दानों के बराबर की गोलियां तैयार कर लें। जब मलेरिया फैल रहा हो, उन दिनों एक-एक गोली सुबह-शाम भोजन के बाद नियमित रूप से सेवन करने से इस ज्वर का शरीर पर आक्रमण नहीं होगा। इन गोलियों का दो-चार दिन सेवन पर्याप्त होता है।
12. गंजापन : सरसों के तेल में अपामार्ग के पत्तों को जलाकर मसल लें और मलहम बना लें। इसे गंजे स्थानों पर नियमित रूप से लेप करते रहने से पुन: बाल उगने की संभावना होगी।
13. खुजली :अपामार्ग के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फूल और फल) को पानी में उबालकर काढ़ा तैयार करें और इससे स्नान करें। नियमित रूप से स्नान करते रहने से कुछ ही दिनों में खुजली दूर जाएगी।
14. आधाशीशी (आधे सिर में दर्द) : इसके बीजों के चूर्ण को सूंघने मात्र से ही आधाशीशी, मस्तक की जड़ता में आराम मिलता है। इस चूर्ण को सुंघाने से मस्तक के अंदर जमा हुआ कफ पतला होकर नाक के द्वारा निकल जाता है और वहां पर पैदा हुए कीड़े भी झड़ जाते हैं।
15. बहरापन : अपामार्ग की साफ धोई हुई जड़ का रस निकालकर उसमें बराबर मात्रा में तिल को मिलाकर आग में पकायें। जब तेल मात्र शेष रह जाये तब छानकर शीशी में रख लें। इस तेल की 2-3 बूंद गर्म करके हर रोज कान में डालने से कान का बहरापन दूर होता है।
16. आंखों के रोग :
आंख की फूली में अपामार्ग की जड़ के 2 ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच शहद के साथ मिलाकर दो-दो बूंद आंख में डालने से लाभ होता है।
धुंधला दिखाई देना, आंखों का दर्द, आंखों से पानी बहना, आंखों की लालिमा, फूली, रतौंधी आदि विकारों में इसकी स्वच्छ जड़ को साफ तांबे के बरतन में, थोड़ा-सा सेंधानमक मिले हुए दही के पानी के साथ घिसकर अंजन रूप में लगाने से लाभ होता है।
17. खांसी :
अपामार्ग की जड़ में बलगमी खांसी और दमे को नाश करने का चामत्कारिक गुण हैं। इसके 8-10 सूखे पत्तों को बीड़ी या हुक्के में रखकर पीने से खांसी में लाभ होता है।
अपामार्ग के चूर्ण में शहद मिलाकर सुबह-शाम चटाने से बच्चों की श्वासनली तथा छाती में जमा हुआ कफ दूर होकर बच्चों की खांसी दूर होती है।
खांसी बार-बार परेशान करती हो, कफ निकलने में कष्ट हो, कफ गाढ़ा व लेसदार हो गया हो, इस अवस्था में या न्यूमोनिया की अवस्था में आधा ग्राम अपामार्ग क्षार व आधा ग्राम शर्करा दोनों को 30 मिलीलीटर गर्म पानी में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से 7 दिन में बहुत ही लाभ होता है।
श्वास रोग की तीव्रता में अपामार्ग की जड़ का चूर्ण 6 ग्राम व 7 कालीमिर्च का चूर्ण, दोनों को सुबह-शाम ताजे पानी के साथ लेने से बहुत लाभ होता है।
18. विसूचिका (हैजा) :
अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को 2 से 3 ग्राम तक दिन में 2-3 बार शीतल पानी के साथ सेवन करने से तुरंत ही विसूचिका नष्ट होती है। अपामार्ग के 4-5 पत्तों का रस निकालकर थोड़ा जल व मिश्री मिलाकर देने से विसूचिका में अच्छा लाभ मिलता है।
अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़, 4 कालीमिर्च, 4 तुलसी के पत्तें। इन सबको पीसकर तथा पानी में घोलकर इतनी ही मात्रा में बार-बार पिलाएं।
कंजा की जड़, अपामार्ग की जड़, नीम की अंतरछाल, गिलोय, कुड़ा की छाल-इन सबको समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनायें। शीतल होने पर 10-10 ग्राम की मात्रा में 3 दिन सेवन कराने से हैजा का प्रभाव शांत हो जाता है।
19. बवासीर :
अपामार्ग के बीजों को पीसकर उनका चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम चावलों के धोवन के साथ देने से खूनी बवासीर में खून का आना बंद हो जाता है।
अपामार्ग की 6 पत्तियां, कालीमिर्च 5 पीस को जल के साथ पीस छानकर सुबह-शाम सेवन करने से बवासीर में लाभ हो जाता है और उसमें बहने वाला रक्त रुक जाता है।
पित्तज या कफ युक्त खूनी बवासीर पर अपामार्ग की 10 से 20 ग्राम जड़ को चावल के धोवन के साथ पीस-छानकर 2 चम्मच शहद मिलाकर पिलाना गुणकारी हैं।
अपामार्ग की जड़, तना, पत्ता, फल और फूल को मिलाकर काढ़ा बनायें और चावल के धोवन अथवा दूध के साथ पीयें। इससे खूनी बवासीर में खून का गिरना बंद हो जाता है।
अपामार्ग का रस निकालकर या इसके 3 ग्राम बीज का चूर्ण बनाकर चावल के धोवन (पानी) के साथ पीने से बवासीर में खून का निकलना बंद हो जाता है।
20. उदर विकार (पेट के रोग) :
अपामार्ग पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) को 20 ग्राम लेकर 400 मिलीलीटर पानी में पकायें, जब चौथाई शेष रह जाए तब उसमें लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग नौसादर चूर्ण तथा एक ग्राम कालीमिर्च चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पेट का दर्द दूर हो जाता है।
पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का काढ़ा 50-60 मिलीलीटर भोजन के पूर्व सेवन से पाचन रस में वृद्धि होकर दर्द कम होता है। भोजन के दो से तीन घंटे पश्चात पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का गर्म-गर्म 50-60 मिलीलीटर काढ़ा पीने से अम्लता कम होती है तथा श्लेष्मा का शमन होता है। यकृत पर अच्छा प्रभाव होकर पित्तस्राव उचित मात्रा में होता है, जिस कारण पित्त की पथरी तथा बवासीर में लाभ होता है।
21. भस्मक रोग (भूख का बहुत ज्यादा लगना) :
भस्मक रोग जिसमें बहुत भूख लगती है और खाया हुआ अन्न भस्म हो जाता है परंतु शरीर कमजोर ही बना रहता है, उसमें अपामार्ग के बीजों का चूर्ण 3 ग्राम दिन में 2 बार लगभग एक सप्ताह तक सेवन करें। इससे निश्चित रूप से भस्मक रोग मिट जाता है।
अपामार्ग के 5-10 ग्राम बीजों को पीसकर खीर बनाकर खिलाने से भस्मक रोग मिट जाता है। यह प्रयोग अधिक से अधिक 3 बार करने से रोग ठीक होता है। इसके 5-10 ग्राम बीजों को खाने से अधिक भूख लगना बंद हो जाती है।
अपामार्ग के बीजों को कूट छानकर, महीन चूर्ण करें तथा बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर, तीन-छ: ग्राम तक सुबह-शाम पानी के साथ प्रयोग करें। इससे भी भस्मक रोग ठीक हो जाता है।
22. वृक्कशूल (गुर्दे का दर्द) : अपामार्ग (चिरचिटा) की 5-10 ग्राम ताजी जड़ को पानी में घोलकर पिलाने से बड़ा लाभ होता है। यह औषधि मूत्राशय की पथरी को टुकड़े-टुकड़े करके निकाल देती है। गुर्दे के दर्द के लिए यह प्रधान औषधि है।
23. योनि में दर्द होने पर : अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को पीसकर रस निकालकर रूई को भिगोकर योनि में रखने से योनिशूल और मासिक धर्म की रुकावट मिटती है।
24. गर्भधारण करने के लिए :
अनियमित मासिक धर्म या अधिक रक्तस्राव होने के कारण से जो स्त्रियां गर्भधारण नहीं कर पाती हैं, उन्हें ऋतुस्नान (मासिक-स्राव) के दिन से उत्तम भूमि में उत्पन्न अपामार्ग के 10 ग्राम पत्ते, या इसकी 10 ग्राम जड़ को गाय के 125 मिलीलीटर दूध के साथ पीस-छानकर 4 दिन तक सुबह, दोपहर और शाम को पिलाने से स्त्री गर्भधारण कर लेती है। यह प्रयोग यदि एक बार में सफल न हो तो अधिक से अधिक तीन बार करें।
अपामार्ग की जड़ और लक्ष्मण बूटी 40 ग्राम की मात्रा में बारीक पीस-छानकर रख लेते हैं। इसे गाय के 250 मिलीलीटर कच्चे दूध के साथ सुबह के समय मासिक-धर्म समाप्त होने के बाद से लगभग एक सप्ताह तक सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से स्त्री गर्भधारण के योग्य हो जाती है।
25. रक्तप्रदर :
अपामार्ग के ताजे पत्ते लगभग 10 ग्राम, हरी दूब पांच ग्राम, दोनों को पीसकर, 60 मिलीलीटर पानी में मिलाकर छान लें, तथा गाय के दूध में इच्छानुसार मिश्री मिलाकर सुबह-सुबह 7 दिन तक पिलाने से अत्यंत लाभ होता है। यह प्रयोग रोग ठीक होने तक नियमित करें, इससे निश्चित रूप से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है। यदि गर्भाशय में गांठ की वजह से खून का बहना होता हो तो भी गांठ भी इससे घुल जाता है।
10 ग्राम अपामार्ग के पत्ते, 5 दाने कालीमिर्च, 3 ग्राम गूलर के पत्ते को पीसकर चावलों के धोवन के पानी के साथ सेवन करने से रक्त प्रदर में लाभ होता है।
26. व्रण (घावों) पर : घावों विशेषकर दूषित घावों में अपामार्ग का रस मलहम के रूप में लगाने से घाव भरने लगता है तथा घाव पकने का भय नहीं रहता है।
27. संधिशोथ (जोड़ों की सूजन) : जोड़ों की सूजन एवं दर्द में अपामार्ग के 10-12 पत्तों को पीसकर गर्म करके बांधने से लाभ होता है। संधिशोथ व दूषित फोड़े फुन्सी या गांठ वाली जगह पर पत्ते पीसकर लेप लगाने से गांठ धीरे-धीरे छूट जाती है।
28. बुखार : अपामार्ग (चिरचिटा) के 10-20 पत्तों को 5-10 कालीमिर्च और 5-10 ग्राम लहसुन के साथ पीसकर 5 गोली बनाकर 1-1 गोली बुखार आने से 2 घंटे पहले देने से सर्दी से आने वाला बुखार छूटता है।
30. श्वासनली में सूजन (ब्रोंकाइटिस) : जीर्ण कफ विकारों और वायु प्रणाली दोषों में अपामार्ग (चिरचिटा) की क्षार, पिप्पली, अतीस, कुपील, घी और शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) में पूर्ण लाभ मिलता है।
31. दमा या श्वास रोग :
अपामार्ग के बीजों को चिलम में भरकर इसका धुंआ पीते हैं। इससे श्वास रोग में लाभ मिलता है।
अपामार्ग का चूर्ण लगभग आधा ग्राम को शहद के साथ भोजन के बाद दोनों समय देने से गले व फेफड़ों में जमा, रुका हुआ कफ निकल जाता है।
अपामार्ग (चिरचिटा) का क्षार 0.24 ग्राम की मात्रा में पान में रखकर खाने अथवा 1 ग्राम शहद में मिलाकर चाटने से छाती पर जमा कफ छूटकर श्वास रोग नष्ट हो जाता है।
चिरचिटा की जड़ को किसी लकड़ी की सहायता से खोद लेना चाहिए। ध्यान रहे कि जड़ में लोहा नहीं छूना चाहिए। इसे सुखाकर पीस लेते हैं। यह चूर्ण लगभग एक ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ खाएं इससे श्वास रोग दूर हो जाता है।
अपामार्ग (चिरचिटा) 1 किलो, बेरी की छाल 1 किलो, अरूस के पत्ते 1 किलो, गुड़ दो किलो, जवाखार 50 ग्राम सज्जीखार लगभग 50 ग्राम, नौसादर लगभग 125 ग्राम सभी को पीसकर एक लीटर पानी में भरकर पकाते हैं। पांच किलो के लगभग रह जाने पर इसे उतार लेते हैं। डिब्बे में भरकर मुंह बंद करके इसे 15 दिनों के लिए रख देते हैं फिर इसे छानकर सेवन करें। इसे 7 से 10 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करें। इससे श्वास, दमा रोग नष्ट हो जाता है।
32. दांतों में कीड़े लगना : चिरमिटी की जड़ को कान पर बांधने से दांतों में लगे कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
33. आँख के रोग : चिरमिटी को पानी में उबालकर, उसका पानी पलकों पर लगाने से आंखों की सूजन, आंखों की जलन, अभिष्यन्द और पलकों पर होने वाली मवाद आदि रोग दूर हो जाते हैं।
34. रतौंधी (रात में दिखाई न देना) :
10 ग्राम अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को शाम के समय भोजन करने के बाद रोजाना चबाकर सो जाने से 2 से 4 दिनों के बाद ही रतौंधी रोग समाप्त हो जाता है।
अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को छाया में सुखाकर और फिर उसका चूर्ण बनाकर 5 ग्राम चूर्ण रात को पानी के साथ खाने से 4-5 दिन में रतौंधी रोग में आराम आने लगता है।
अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को गाय के पेशाब में घिसकर आंखों में लगाएं।
35. गर्भनिरोध : अपामार्ग की जड़ को स्त्री की योनि में बत्ती बनाकर रखने से स्थिर गर्भ भी नष्ट हो जाता है।
36. मुंह का रोग : अपामार्ग की जड़ का काढ़ा बनाकर इसमें सेंधानमक मिलाकर कुल्ला करने से गले, मुंह का दाना व होंठों का फटना बंद हो जाता है।
37. मूत्ररोग : अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ 5 ग्राम से 10 ग्राम या काढ़ा 15 ग्राम से 50 ग्राम को मुलेठी और गोखरू के साथ सुबह-शाम लेने से पेशाब की जलन और सूजन दूर होती है।
38. कष्टार्तव (मासिक धर्म का कष्ट के साथ आना) : अपामार्ग की जड़ 10 ग्राम, कपास के फूल 10 ग्राम, गाजर के बीज 10 ग्राम को 250 ग्राम जल में उबालें। जब 20 ग्राम के लगभग जल शेष रह जाए तो इसे छानकर रात्रि के समय पिलाने से सुबह ऋतुस्राव (माहवारी) बिना दर्द के होता है।
39. मृत्वत्सा दोष (गर्भ में बच्चे का मर जाना) : चिरचिटा (अपामार्ग) की जड़ के साथ लक्ष्मण बूटी की जड़ को, एक रंग वाली गाय (जिस गाय के बछड़े न मरते हो) के दूध में पीसकर खाने से पुत्र की आयु बढ़ती है तथा गर्भ में बच्चे की मृत्यु नहीं होती है।
40. पथरी : 2 ग्राम अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को पानी के साथ पीस लें। इसे प्रतिदिन पानी के साथ सुबह-शाम पीने से पथरी रोग ठीक होता है।
41. जलोदर (पेट में पानी का भरना) : चिरचिटा (अपामार्ग) की जड़ 5 से 10 ग्राम या जड़ का काढ़ा बनाकर 15 से लेकर 50 मिलीलीटर को मुलेठी और गोखरू के साथ रोज दिन में सुबह और शाम खुराक के रूप में लेने से पेशाब की अम्लता कम हो जाती है और जलोदर में लाभ होता है।
42. यकृत का बढ़ना : अपामार्ग का क्षार मठ्ठे के साथ एक चुटकी की मात्रा से बच्चे को देने से बच्चे की यकृत रोग के मिट जाते हैं।
43. पेट का बढ़ा होना : चिरचिटा (अपामार्ग) की जड़ 5 ग्राम से लेकर 10 ग्राम या जड़ का काढ़ा 15 ग्राम से 50 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम कालीमिर्च के साथ खाना खाने से पहले पीने से आमाशय का ढीलापन में कमी आकर पेट का आकार कम हो जाता है।
44. पित्त की पथरी में : पित्त की पथरी में चिरचिटा की जड़ आधा से 10 ग्राम कालीमिर्च के साथ या जड़ का काढ़ा कालीमिर्च के साथ 15 ग्राम से 50 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम खाने से पूरा लाभ होता है। काढ़ा अगर गर्म-गर्म ही खायें तो लाभ होगा।
45. नाक के रोग : अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को पीसकर नाक से सूंघने से नकसीर (नाक से खून बहना) बंद हो जाता है।
46. गुल्म (वायु का गोला) : अपामार्ग की जड़, स्याह मिर्च पीसकर घी के साथ प्रयोग कर सकते हैं।
47. योनि का दर्द : 5 ग्राम अपामार्ग की जड़ और 5 ग्राम पुनर्नवा की जड़ को लेकर बारीक पीसकर योनि पर लेप करने से योनि (भग) के दर्द से छुटकारा मिलता है।
48. पेट में दर्द होने पर : चिरचिटा (अपामार्ग) की जड़ को 5 ग्राम से 10 ग्राम या इसी का काढ़ा बनाकर 15 ग्राम से 50 ग्राम को कालीमिर्च के साथ खाना खाने से पहले सुबह और शाम पिलाने से भोजन के न पचने के कारण होने वाले पेट का दर्द मिटता है और खाना खाने के बाद पीने से अम्लदोष में आराम होगा।
49. गठिया रोग : अपामार्ग (चिचड़ा) के पत्ते को पीसकर, गर्म करके गठिया में बांधने से दर्द व सूजन दूर होती है।
50. कण्ठमाला के लिए : अपामार्ग की जड़ की राख को खाने और गांठों पर लगाने से कण्ठमाला रोग (गले की गांठे) समाप्त हो जाता है।

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