Wednesday 30 November 2016

मनोकामनाओं की पूर्ति गौ सेवा द्वारा

प्राचीन समय से हमारे पूर्वज गऊ माता की सेवा करके सुख और समृद्धि प्राप्त करते रहे है | गऊ माता की सेवा करके मनुष्य अपने जीवन में ऐसे चमत्कारी लाभ प्राप्त कर सकता है जो मनुष्य को संसार के सभी सुख प्रदान करने में सहायक होते है | आईये जाने कैसे गऊ माता की सेवा करके लाभ प्राप्त किये जा सकते है|

गाय को घास खिलाना बहुत पुण्यदायी :
जिस प्रकार मनुष्य तीर्थ स्थान पर स्नान करने के बाद दान दक्षिणा देता है तथा ब्राहमण को खाना खिलाकर जो पुण्य प्राप्त करता है, वही पुण्य गाय को घास खिला कर प्राप्त किया जा सकता है | इसके अलावा व्रत उपवास, तपस्या, महादान और भगवान की आराधना करके तथा पृथ्वी की परिक्रमा, सभी वेदों का अध्ययन करके, यज्ञ करने से भी जिस पुण्य की प्राप्ति होती है गौ माता की सेवा करके ठीक उसी तरह के पुण्य की प्राप्ति की जा सकती है |

भूमि दोषों की समाप्ति:
गऊ माता जिस भूमि पर निवास करती है उस स्थान की पवित्रता तथा सुन्दरता में स्वयं वृद्धि हो जाती है | गऊ माता के साँस से ही उस स्थान के सभी पाप समाप्त हो जाते है |

सबसे बड़ा तीर्थ है गौ सेवा :
देवराज इंद्र द्वारा बताया गया है कि गौ माता में सभी तीर्थ स्थानों का निवास है और जो व्यक्ति गाय की पीठ को हाथ से सहलाकर उसकी सेवा करते है तथा गाय के पैरों को छू कर नमस्कार कर लेता है मानो वो सभी तीर्थों का भ्रमण कर लेता है |

गौ सेवा से वरदान की प्राप्ति :
गौ माता की सेवा करके जो व्यक्ति गऊ माता का सभी प्रकार से आदर सत्कार करता है गऊ माता उससे प्रसन्न होकर उस व्यक्ति को लाभकारी वरदान प्रदान करती है |

मनोकामनाओं की पूर्ति गौ सेवा द्वारा :
जो व्यक्ति गौ माता की पूर्ण रूप से सेवा करता है जैसे गाय को पानी पिलाना, चारा खिलाना, गाय को नहलाना, गाय की पीठ पर हाथ फेरना (सहलाना), बीमार गाय का इलाज करके स्वस्थ करना आदि | ये सब कार्य करने वाले मनुष्य की पुत्र, धन, विद्या, सुख तथा इच्छित वस्तु आदि सम्बन्धी मनोकामना पूरी होती है | गौ सेवा करने वाले मनुष्य के लिए किसी भी वस्तु की प्राप्ति मुश्किल नहीं होती है |

जीव को मुक्ति दिलवाने वाले सार पदार्थ :
भगवान विष्णु, गंगानदी, तुलसी, भगवद्गीता, गयाजी और गाय – जीव को इस संसार से मुक्ति दिलवाने वाले ये सार पदार्थ है |

मंगलमय करने के लिए क्या करें :
जिस व्यक्ति को अपने सभी पापों का नाश करके घर या परिवार में सब कुशल मंगल करना है तो उसके घर पर बछड़े सहित एक गाय होनी बहुत आवश्यक है | बिना गाय की सेवा के अमंगल का नाश करने की कामना नहीं की जा सकती |

किसी को दान ना देने की सलाह ना दें :
कुछ व्यक्ति गौ, ब्राहम्ण तथा रोगियों को दान देने से रोकते है तथा मनाही करते है| ऐसे व्यक्ति मरने के पश्चात भूतों की श्रेणी में चले जातें है|

गौ पूजा – विष्णु पूजा के समान :
जो व्यक्ति गऊ माता की सेवा तथा पूजा करता है उसके द्वारा देवताओं, असुरों और मनुष्यों सहित सम्पूर्ण सृष्टी की सेवा अपने आप हो जाती है| इस सम्बन्ध में भगवान विष्णु देवराज इंद्र से कहते है जो व्यक्ति गाय की पूजा करता है उस पूजा को मैं अपनी पूजा मानकर ग्रहण करता हूँ|

गौधूली महान पापों की नाशक :
गाय के खुरों से उठने वाली धूल, धान्यों की धूलि तथा शरीर पर लगी हुई धूल बहुत ही पवित्र तथा पापों का नाश करने के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध होती है|

चारों समान है :
गौ सेवा करना, प्रतिदिन भगवान का पाठ करना, भगवान का चिंतन करना, तुलसी को सींचना आदि से समान रूप से फल की प्राप्ति होती है|

गौ सेवा के अद्धभुत चमत्कार :
प्रतिदिन गाय के दर्शन, गाय की पूजा, परिक्रमा, गाय की पीठ को हाथ से सहलाना, गाय को हरी घास या चारा खिलाना, पानी पिलाना तथा सेवा करने से मनुष्य को दुर्लभ लाभ तथा सिद्धि प्राप्त होती है| गौ सेवा करके मनुष्य अपनी सभी इच्छाओं और मनोकामनाओं को पूरी कर सकता है|

जैसा की आपको पहले भी बताया गया है कि गाय के शरीर में सभी देवी देवता, ऋषि मुनि, सभी नदियाँ तथा तीर्थ स्थान होते है इसलिए गाय की सेवा करने से इन सभी से मिलने वाले वरदान की प्राप्ति की जा सकती है| इसके अलावा गाय को रोजाना प्रणाम करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को भी पाया जा सकता है| जो व्यक्ति जीवन में अपार सुख की इच्छा रखते है उनके लिए प्रतिदिन गाय को प्रणाम करना बहुत जरुरी है|

ऋषियों और धर्म गुरुओं द्वारा गौ पूजा और गौ सेवा को सर्वश्रेष्ठ धर्म बताया गया है| गाय के दर्शन करके यात्रा करने से यात्रा मंगलमयी होती है| इसके अलावा जिस भूमि या स्थान पर गाय निवास करती है उस स्थान का वातावरण अत्यंत पवित्र और शुद्ध रहता है| इसलिए भूमि को पवित्र बनाने के लिए गाय पालन बहुत लाभदायक होता है| सुबह स्नान करके के बाद गाय को स्पर्श करके पापों का नाश किया जा सकता है|

गाय का दूध – धरती का अमृत :
गाय का दूध अनेक रोगों के निवारण में बहुत गुणकारी सिद्ध होता है| गाय के दूध के समान दिव्य पदार्थ और दूसरा कोई नहीं है| गाय का दूध पूर्ण आहार है इसलिए इसे धरती के अमृत का नाम दिया गया है| इस संसार में गाय के दूध जैसा पोष्टिक आहार दूसरा कोई नहीं है|

गाय के दूध का सेवन करना गाय की सेवा जैसा ही होता है क्योंकि इससे गाय पालन को बढ़ावा मिलता है साथ ही गाय की सेवा और सुरक्षा भी होती है| इसलिए गाय के दूध का सेवन करके आप गौ माता की सेवा और सुरक्षा में अपना योगदान दे सकते है|

पंचगव्य :
गाय के दूध, दही, घी, गोबर , गो-मूत्र को एक निश्चित अनुपात में मिश्रण करके पंचगव्य का नाम दिया गया है| इसका नियमित सेवन करने से मनुष्य के सभी पाप दूर हो जाते है तथा बुराई मनुष्य से हमेशा दूर रहती है| ऐसा कोई रोग इस संसार में नहीं है जिसको पंचगव्य का सेवन करके ख़त्म नहीं किया जा सकता| यह सभी रोगों को ख़त्म करने में बहुत लाभकारी साबित होता है|

Tuesday 22 November 2016

जानिए पंचगव्य के बारे में


गाय को यूं ही माता नहीं कहा गया है। गाय से उत्पन्न हर चीज एक औषधि है। पंचगव्य से लगभग सभी लोग परिचित होंगे और उसके धार्मिक व व्यवहारिक महत्व से भी अनजान नहीं होंगे। पंचगव्य में पांच वस्तुयें आती है। गाय का दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर। पंचगव्य का धार्मिक महत्व न बताकर उसके आयुर्वेदिक महत्व को बताने का प्रयास कर रहा है।
जानिए गाय के बारे में हैरान कर देने वाले रोचक तथ्य

गाय के रंग भेद से भी इन वस्तुओं को ग्रहण करने का विधान है-पीली गाय का दूध, नीली गाय का दही, काली गाय का घी, लाल गाय का गोमूत्र व सफेद गाय का गोबर ग्रहण करने के लिए अति उत्तम होता है।
मां के बाद गाय का दूध ही अमृत है क्यों?

इन पांच वस्तुओं का अलग-अलग गुण क्रमश इस प्रकार है-

1-गाय के दूध की महत्ता

स्वादु शीत मृदु स्निग्ध बहुलं श्लक्ष्णापिच्छिलम्।
गुरूं मन्दं प्रसन्नं च गव्यं दश गुणं पयः।।
तदेवं गुणमेवौजः सामान्यादभिवर्धयेत्।
प्रचुरं जीवनीयानां क्षरमुक्तम रसायनम्।।
गाय का दूध स्वादिष्ट ठण्डा, कोमल, घी वाला, गाढ़ा, चिकना लिपटने वाला, भारी ढीला और स्वच्छ होता है। गाय का दूध अच्छा मीठा, वातपित्तनाशक व तत्काल वीर्य उत्पन्न करने वाला होता है। इस प्रकार गाय का दूध जीवन शक्ति को बढ़ाने वाला सर्वश्रेष्ठ रसायन है।

2- चरकसंहिता में दही का महत्व

रोचनं दीपनं वृष्यं स्नेहनं बलवर्धनं।
पाकेम्लमुष्णं वाताध्नं मंगल्यं वृहणं दहि।।
पीनसे चातिसारे च शीतके विषमज्वरे।।
अरूचै मूत्राकृच्छे च काश्र्ये च दधि शस्यते।।
अर्थात दही रूचि पैदा करने वाला अग्नि बढ़ाने वाला, शुक्र को बढ़ाने वाला, चिकनाई लाने वाला, मंगल करने वाला व शरीर को पुष्ट करने वाला होता है। अतिसार शीतक पुराने ज्वर अरूचि, मूत्र सम्बन्धी रोगों को दूर करने वाला और शरीर की दुर्बलता को दूर करने वाला होता है।

3-गाय के घी का महत्व

योग रत्नाकार के अनुसार- गाय का घी बुद्धि, कान्ति, स्मरण शक्ति को बढाने वाला, बल देने वाला, शुद्धि करने वाला, गैस मिटाने वाला, थकावट मिटाने वाला। गाय का घी अमृत के समान है जो जहर का नाश करने वाला व नेत्रों की ज्योति बढाने वाला होता है।

4- गोमूत्र का महत्व

चरक संहिता आदि आयुर्वेद के ग्रन्थों में गोमूत्र की बड़ी महिमा बताई है। गोमूत्र तीता, तीखा, गरम, खारा, कड़वा, और कफ मिटाने वाला है। हल्का अग्नि बढ़ाने वाला, बु़द्धि और स्मरण शक्ति बढ़ाने वाला, पित्त, कफ और वायु को दूर करने वाला होता है। त्वचा रोग, वायु रोग, मुख रोग, अमावत पेट के दर्द और कुष्ठ का नाशक है। खांसी, दमा, पीलिया, रक्त की कमी को गोमूत्र देर करता है। मात्र गोमूत्र पीने से खुजली, गुदा का दर्द, पेट के कीड़े, पीलिया आदि रोगों का शमन होता है।

5- गोबर का महत्व

गोबर का सबसे बड़ा गुण कीटाणु नाशक है। इसमें हर प्रकार के कीटाणुओं को नष्ट करने की क्षमता है। इसलिए गावों में आज भी शुभ कार्य करने से पूर्व गोबर से लेपा जाता है। इससे पवित्रता व स्वच्छता दोनों बनी रहती है। गोबर हैजे, प्लेग, कुष्ठ व अतिसार रोगों में लाभप्रद है। पंचगव्य स्वंय में एक औषधि है। योगरत्नाकर में इसके महत्व का वर्णन इस प्रकार किया गया है। गाय के गोबर का रस, दही का खट्टा पानी, दूध, घी और गोमूत्र इन सभी चीजों को बराबर मात्रा में लेकर बनाई गई औषधि प्रयोग करने से पागलपन, शरीर की सूजन, व उदर रोगों में लाभ मिलता है। इसी औषधि को लेकर पूरे घर में छिड़कने से भूतप्रेत बाधा, आर्थिक तंगी व रोगों से मुक्ति मिलती है।

पंचगव्य निर्माण और फायदे


पंचगव्य का धार्मिक महत्व तो है ही साथ ही मानव जीवन के स्वास्थ के लिए भी कई गुना इसका महत्व है। पंचगव्य क्या है? पंचगव्य गाय के दूध, घी, दही, गोबर का पानी और गोमूत्र का मिश्रण है। इन पाचों चीजों को मिलाने से जो तत्व बनता है वो पंचगव्य कहलाता है। आयुर्वेद में इसे औषधि के रूप में माना गया है। पंचगव्य रोग नाशक औषधि है क्योंकि गाय के गोबर में चर्म रोग को दूर करने की क्षमता है। गाय के मूत्र में आक्सीकरण की क्षमता की वजह से डीएनए को खत्म होने से बचाया जा सकता है।
गाय के घी से मानसिक और शरीर की क्षमता बढ़ती है। और गाय के दूध से बनी दही में प्रोटीन शरीर को कई रोगों से बचाती है। इसलिए देसी गाय का पंचगव्य उत्तम होता है। गाय के हर एक उत्पाद में मानव के जीवन के लिए बेहद उपयोगी तत्व छिपे हुए हैं। भारतीय नस्ल की गाय में ही सबसे अधिक गुण पाए जाते हैं। 
पंचगव्य के बारे में महर्षि चरक का कहना था कि गोमूत्र कषाय और काफी तेज होती है। जिसकी मुख्य वजह है इसमें मौजूद यूरिक एसिड, अमोनिया, नाइट्रोजन, पोटेसियम, मैंगनीज के साथ-साथ विटामिन बी, ए, और डी का पाया जाना। जो ब्लड प्रैशर को नियंत्रित करते हैं। इसके अलावा यह पेट संबंधी रोगों को भी दूर करने में लाभदायक होता है।

देसी गाय के गोमूत्र और गोबर बेहद शक्तिशाली हैं। यदि वैज्ञानिक तौर से देखा जाए तो 23 प्रकार के प्रमुख तत्व गाय के मूत्र में पाए जाते हैं। इन तत्वों में कई मिनरल, विटामिन और प्रोटीन पाए जाते हैं।
गाय के गोबर को खेत में डालने से खेत के लिए लाभकारी जीवाणु मिलते है। गाय के गोबर की खाद से पैदा हुआ अन्न शरीर को हर तरह की बीमारियों से बचाव करता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भारतीय गाय की रीढ की हड्डी में सूर्य केतु नाम की एक अद्भुद नाड़ी होती है जब सूर्य की किरणें इन पर पड़ती है तो यह नाड़ी सूर्य की किरणों के साथ मिलकर सूक्ष्म कणों को बनाती है जिस वजह से देसी गाय का दूध हल्का पीला होता है। गाय का दूध अन्य दूसरे जानवरों के दूध से सबसे ज्यादा पौष्टिक और शरीर को निरोगी करने वाला होता है।                          
गाय का दूध हो चाहे घी हर एक-एक उत्पाद इंसान को बीमारियों से बचाने वाला होता है। इसलिए हर इंसान को आपने और अपने परिवार के लिए गाय के दूध का प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि गाय का दूध पीने से कई तरह की बीमारियां शरीर को नहीं लगती हैं। और जो बिमारियां शरीर पर पहले से ही हैं उन्हें भी गाय का हर एक उत्पाद खत्म कर देता है।

Thursday 17 November 2016

अच्छी नस्ल की भारतीय गाय कहा कहा से ख़रीदे ?


भारतीय गायो में 30 प्रकार की नस्ले पायी जाती है। बहुत सारी नस्लों की गाये विलुप्त होती जा रही है। और उनकी सख्या भी लगातार घटती जा रही है। और जो बची हुई है। वो भी अशुद्ध नस्ले बनती जा रही है। क्यों की उनके हिट पर आने वाले समय पर उसी नस्ल के सांड का नही मिल पाना या अन्य तरीके से उन्हें गर्भधारण करवाना आदि कई कारण से भारतीय नस्ल की गाय की सख्या कम होती जा रही है।

 अच्छी नस्ल की भारतीय गाय कहा कहा से ख़रीदे ? 

 सबसे पहले तो हमें जिस नस्ल की गाय चाहिए उसकी पूरी जानकारी होना आवश्यक होता है। उसका वजन रंग शरीर खान पान दूध शाररिक सरचना उसकी उत्पत्ति का स्थान आदि।क्यों की आज कल पशुओ का व्यापर करने वाले लोग किसी भी नस्ल को कुछ भी बता कर बेचने में माहिर होते है। पशु की नस्ल की जानकारी के लिए आप अपने पशुपालन विभाग के अधिकारियो से या विरिष्ट पशु चिकत्सक से उसके रूप रंग आकर की जानकारी जरुर ले ले इसके आलवा आप inter net के माध्यम से या अन्य तरीके से जानकारी लेने के बाद ही पशु खरीदने जाए। अच्छी नस्ल के पशु कहा से ख़रीदे उसके लिए हम इन विकल्प का उपयोग कर सकते है।

1 पशु हाट पशु मेले:- 

आप अगर पशु जेसे गाय बेल बकरी भेस आदि खरीदना चाहते है तो पहले अपने क्षेत्र के पशु हाट में तलाश करे अगर आपको जिस तरह की नस्ल का पशु चाहिए वो उस हाट में मिल जाता है तो अच्छा है क्यों की परिचित से पशु खरीदने पर आपको धोखे की सम्भावना कम हो जाती है। इनके अलावा आप भारत में कई बड़े बड़े पशु मेलो का आयोजन होता है। वहां भी आपको अच्छी नस्ल के और दुधारू पशु मिल सकते है। में यहाँ पर उन मुख्य मेलो के बारे में sort में बता देता हु। 
बिहार के सोनपुर पशु मेला 
यह एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है। जिसमे बहुत सारी नस्लों के पशु आते है इस मेले का आयोजन बहुत बड़े पैमाने पर होता है
मेला- नवम्बर दिसम्बर माह में लगता है।
राजस्थान का पुष्कर पशु मेला
अजमेर के पास पुष्कर में राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है जिसमे दूर दारज के राज्यों के लोग पशु खरीदने बेचने आते है। यहा पर भी आपको अच्छी नस्ल के पशु उपलब्ध हो जाते है। गिर गाय भी यहाँ मिल जाती है।
मेला-कार्तिक की पूर्णिमा को यह मेला लगता है।
नागोर का पशु मेला
राजस्थान के नागोर में लगता है यहाँ भी बहुत से राज्यों के व्यपारी पशु खरीदने बेचने आते है।
मेला-जनवरी फरवरी माह में लगता है।
कोलायत पशु मेला 
राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है।इसका आयोजन दिसम्बर माह में किया जाता है।
नागपुर का पशु मेला 
यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है। यहाँ अक्सर बहुत से मेले लगते रहते है इस मेले का आयोजन जनवरी फरवरी में होता है।
आगरा का पशु मेला
आगरा के पास बटेश्वर शहर में ये मेला कार्तिक माह में लगता है।
झालावाड पशु मेला 
इस मेले का आयोजन झालावाड के पास झालापाटन में किया जाता है इस मेले में गाय बेल भेस उट की बिक्री बड़े पैमाने पर होती है इसका आयोजन कार्तिक माह में किया जाता है।
साहिवाल जाती की गाये प्राय पंजाब,हरियाणा,उतरप्रदेश,बिहार,दिल्ली मध्यप्रदेश में पायी जाती है।आप इन्हें अम्रतसर,जालन्धर,हिसार,गुरदासपुर,करनाल,कपूरथला,फिरोजपुर,अन्होरदुर्ग(mp)लखनव,मेरठ,बिहार पश्चिम बंगाल के पशु हाट पशु मेलो से खरीद सकते है।

2 पशु विक्रय केंद्र 

भारत में इसी कई बड़ी गोशालाए हे जहा अच्छी नस्ल की गाय और अन्य पशु वहा आपको उपलब्ध हो जायेगे
आप गिर गाय खरीदने के लिए गुजरात की गो साला में सम्पर्क कर सकते है
aravli gir cow
3 khuran dary form hariyana
इसी कई सारी diary farming side पर भी आप तलाश कर सकते है।

3 online गाय खरीदने बेचने के लिए

ऑनलाइन पशु गाय भेस की जानकारी देखना या खरीदना चाहते हो तो india mart,Olx, Quikr पर भी आपको मिल जाएगी 

अन्य स्रोत

मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में दो अच्छे पशु हाट लगते है।
धून्धडका- रविवार के दिन हर सप्ताह
जाहडा-सोमवार के दिन हर सप्ताह
इनके आलावा आप हरियाणा पंजाब के कई सारे डेयरी फार्म पर भी आपको अच्छी नस्ल की गाय भेस मिल जाएगी
पंजाब राज्य में खरड कुराली शहर के पास एक शाहपुरा गाव है। जहा पर खालसा डेयरी फार्म पर भी आपको अच्छी नस्ल के पशु उपलब्ध हो जाते है।इन डेयरी फर्मो में अच्छी नस्ल के पशु तेयार किये जाते है। इनके अलावा यदि आपके पास भी कोई अच्छा विकल्प हो तो हमें comment में जरुर लिखे ताकि बाकि किसान भाईयो को भी उसका लाभ मिल सके।

                      साभार - My kisan dost    

पशु आहार घर पर कैसे तैयार करे



आज हम पशु आहार घर पर कैसे तैयार करे । इस विषय पर  जानकारी प्रस्तुत है 
 
तो आइये पशुआहार बनाने में क्या क्या चाहिए ।

सामग्री:-

खली-मुगफली,सरसो,सोयबीन,किसी भी तरह की 25 से 35 किलो तक 
दाना- गेहू,मक्का,जो,धान आदि 25से 35 किलो तक 
चोकर(दलिया) 10से 25 किलो तक 
डालो के छिलके-उड़द,चना,आदि 5से 20 किलो 
सोयाबीन- या छिलका 1से 4 किलो
खनिज लवण-1किलो
विटामिन-Aऔर D-3 =20से30ग्राम तक 

आहार बनाने की विधि:-

घर पर पशु आहार बनाने के लिए सबसे पहले खली को बारीक़ कूट ले यदि आपको खली को कूटने में दिक्कत आती हे तो।उसे एक दिन पहले पानी में भिगो ले फिर दूसरे दिन उसे सुखा कर मसल के बारीक़ बना ले ।
उसके बाद मक्का गेहू जो आदि को दल ले मशिन से ज्यदा बारीक़ न पिसे ।
अब खल और धान को बराबर मात्रा में फर्स या पाल पर रख दे ।
उसमे चोकर मिलाये ।
उस मिश्रण में डालो के छिलके मिलाये फिर खनिज लवण और नमक प्रति 50किलो में 450ग्राम नमक मिलाये और साथ में विटामिन मिला कर अच्छे से हिला कर मिश्रण तैयार कर ले 

फिर उसमें कटा हुआ बारीक चारा मिला ले और एक बेग में भर के रख दे । ये अब आपका पशु आहार बन कर तैयार हे ।

कैसे खिलाये:-

सबसे पहले पशु को थोड़ी मात्रा में चखाये।
दूध देने वाले पशुओ को आहार उनकी आवश्यकता के अनुसार ही दिया जाना चाहिए।
2किलो दूध देने वाले पशु को 1किलो पशु आहार खिला सकते हे  
साथ में चारा भी खिलाये 
चारा एक मुख्य पोषक तत्व होता है।

Wednesday 16 November 2016

गोबर की खाद

सरल तरीके से किसान गोबर की खाद केसे बनाये 

मेरे बहुत सारे दोस्तों ने मुझेसे खाद के बारे में जानकारियां मागी तो आज हम इस पोस्ट खाद बनाने की विधिया बताउगा। 1गोबर की खाद
2कंपोस्ट खाद
और अगली पोस्ट में बाकी जो और खाद बनाने की जो विधिया हे वो बताउगा ।

1 गोबर की खाद:-
गोबर की खाद बनाना बहुत सरल होता हे किसानो के घर पर जो गाय भेस बेल या अन्य पालतू पशु से जो गोबर प्राप्त होता हे उसेसे गोबर खाद तैयार किया जाता हे खाद बनाने के लिए विधि बताता हु।
 विधि:-
इसमे जमीन के अंदर 20से25 फिट लंबे और 5से 7 फिट  चौडे एवम 10फिट गहरा गड्डा बनाना पड़ता हे
ये गड्डा पशुओ की संख्या के अनुसार छोटा मोटा भी कर सकते है।
अब उसमे गोबर और पशुओ के खाया हुआ चारा सुखला आदि जो बचा हुआ पर्दाथ को उस खड्डे में डाला जाता हे
फिर उसमें पानी डाला जाता हे उस गड्ढे को गोबर और पानी से भर के ऊपर गोबर से ढक दिया जाता हे 3 महीने में सारा गोबर सड़ कर एक अछी खाद बन जाती है। इस खाद में  इस खाद में नाइट्रोजन,फास्फोरस,और पोटाश की मात्रा होती है।
काम्पोस्ट खाद की  विधि:-
इस विधि में जमीन के ऊपर इटो की चोकोर दीवाल बनाई जाती हे उसमे जाली दार दिवाल बनाई जाती हे ताकि पर्याप्त् मात्रा में हवा मिलती रहे इसकी लम्बाई 25 फिट और चौड़ाई 5फिट और उचाई 4 से 6फिट तक होती हे।इस विधि में थोड़े से गोबर से भी ज्यदा खाद बन जाती हे सबसे पहले निचे गोबर को पानी मिला कर पतला लेप कर दे फिर सड़ा हुआ घास फुस और पत्तो को एक फिट तक भर दे बाद में फिर आधे फिट की गोबर की लेप कर दे उसके बाद उसपर मिट्ठी का एक फिट लेप कर दे और उसे पानी से गिला कर दे हो सके तो गो मूत्र भी डाल दे उसके बाद वापिस एक डेढ फिट गोबर का लेप से अच्छी तरह से ढक दे फिर उसपर त्रिपाल या प्लास्टिक से ढक दे ।फिर 2 से 3 माह के बिच खाद बन कर तैयार हो जाता हे इस विधि में खासकर के ये ध्यान रखना होता है की वो ही घास या फसलो के उपविष्ट पर्दाथ डाले जिसमे बीज आदि ना हो वरना खेतो में निदाई गुड़ाई का खर्चा अधिक आ जायेगा
ये बहुत ही साधरण तरीके हे जिससे आप अच्छी खाद बना सकते है।
अगली पोस्ट में हम खाद की सभी वैज्ञानिक और पारंपरिक तरीको पर चर्चा करेगे
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Monday 14 November 2016

जैविक खेती की मुख्य आवश्यकता "केंचुआ खाद"


आज देश में जैविक खेती की आवश्यकता है, पिछले अंक में इस कम्पोस्ट खाद बनाने के आधार बताये गए थे, इस अंक में आगे चलते हैं, सबसे पहले ये जानना जरूरी है की केंचुआ खाद में कौन-कौन से तत्व पाए जाते हैं, तो लीजिये ......
नाइट्रोजन-- १.२५ से २.५ %
फास्फोरस -- ०.७५ से १.६%
पोटाश ---- ०.५ से १.१ %
कैल्सियम-- ३.० से ४.०%
मैग्निसियम- ३.० से ४.०
सल्फर - १३ पी.पी.एम्
लोहा -४५ से ५० पी.पी.एम्
जस्ता -२५ से ५० पी.पी.एम्
ताम्बा -०४ से ०५ पी.पी.एम्
मैग्नीज -६० से ७० पी.पी.एम्
पी.एच. -७ से ७.८०
कार्बन -१२:१
केंचुआ खाद बनाने के लिए आवश्यकताएं
केंचुओं का भोजन ------------ समस्त गलन शील एवं सडन शील कार्बनिक पदार्थ
नमी (पानी) .........................४०%
ताप क्रम .............................८ से ३० डिग्री सेल्सिअस (२४ डिग्री सर्वोत्तम )
अँधेरा (छाया).......................किसी भी प्रकार से छाया करना (रौशनी से बचाव)
हवा-----------------------------केंचुवे के कार्य क्षेत्र में हवा का प्रवाह बना रहे .
उचित पी.एच......................... ४.५ से ७.५ पी.एच अच्छा है
ये तो थी प्रारंभिक जानकारियां, अब हम केंचुओं के लिए ढेर या बेड बनाने की ओर चलते हैं.
छाया दार स्थान पर केंचुवा खाद बेड / ढेर जमीं के उपर या नीचे २-३ फिट गहरा गड्ढा बनाना चाहिए
गड्ढे की दीवारें मजबूत रहें इसके लिए ईंट या लकडी का उपयोग करना चाहिए
केंचुआ खाद बेड २ पीट या ४ पीट माडल आवश्यकता के अनुसार बनाया जा सकता है.
बेड तैयार होने पर अधसड़े केंचुआ के भोजन पदार्थ को डाल कर आवश्यकतानुसार केंचुए डालना चाहिए.
उत्पादन विधि
केंचुवा खाद बनाने के लिए जमीन, छाया, पानी, कार्बनिक पदार्थ, एवं केंचुओं की आवश्यकता होती है
जमीन पर किसी प्रकार के छायादार स्थान, छप्पर या पेड़ पौधे पर कार्बनिक पदार्थ का ढेर तैयार किया जाता है
ढेर की मोती २-३ फिट एवं ऊंचाई १-२ फिट रखना लाभ दायक होता है,अध् सड़े गोबर एवं पत्तियों से तैयार ढेर पर पानी छिड़क कर ठंडा होने पर ही केंचुए डालना चाहिए. लग-भग ४०% नमी बनाये रखने के लिए आवश्यकतानुसार ढेर पर पानी का छिडकाव किया जाना चाहिए.
केंचुआ खाद उत्पादन में सावधानियां
बेड पर ताजा गोबर नही डालना चाहिए क्योंकि यह गरम होता है,इससे केंचुए मर जाते हैं.
बेड में नमी व छाया, ८ से ३० डिग्री तक तापमान तथा हवा का पर्याप्त प्रवाह बने रहना चाहिए
केंचुओं को मेंढक, सांप, चिडिया, कौवा, छिपकली एवं लाल चींटियों आदि शत्रुओं से बचाना चाहिए.
गोबर अधसडा एवं पर्याप्त नमी युक्त ही प्रयोग में लाना चाहिए.
केंचुआ खाद के लाभ
केंचुआ खाद मृदा में सूक्ष्म जीवाणुओं को सक्रीय कर पोषक तत्त्व पौधों को उपलब्ध करता है.
केंचुआ खाद के प्रयोग से फलों, सब्जियों, एवं अनाजों के स्वाद, आकर, रंग एवं उत्पादन में वृद्धि होती है,
इसके सूक्ष्म जीवाणु, हारमोन एवं ह्युमिक अम्ल मृदा की पी.एच को संतुलित करते हैं.
केंचुआ खाद के प्रयोग से मृदा की जलधारण क्षमता बढ़ जाती है, जिससे सिंचाई की बचत होती है.
केंचुआ खाद के उपयोग से कम लागत में अच्छी गुणवत्ता के फल सब्जी एवं फसलों का उत्पादन होगा.जिससे उपभोक्ता को सस्ता एवं पौष्टिक भोजन उपलब्ध हो सकेगा .
ग्रामीण क्षेत्र में बडे पैमाने पर रोजगार, आय एवं स्वालंबन में वृद्धि होगी.

एक उत्तम कोटि का खाद कृमि खाद


अपशिष्ट या कूड़ा-करकट का मतलब है इधर-उधर बिखरे हुए संसाधन। बड़ी संख्या में कार्बनिक पदार्थ कृषि गतिविधियों, डेयरी फार्म और पशुओं से प्राप्त होते हैं जिसे घर के बाहर एक कोने में जमा किया जाता है। जहाँ वह सड़-गल कर दुर्गंध फैलाता है। इस महत्वपूर्ण संसाधन को मूल्य आधारित तैयार माल के रूप में अर्थात् खाद के रूप में परिवर्तित कर उपयोग में लाया जा सकता है। कार्बनिक अपशिष्ट का खाद के रूप में परिवर्तन का मुख्य उद्देश्य केवल ठोस अपशिष्ट का निपटान करना ही नहीं अपितु एक उत्तम कोटि का खाद भी तैयार करना है जो हमारे खेत को उचित पोषक तत्व प्रदान करें।
 
कृमि खाद में स्थानीय प्रकार के केंचुओं का प्रयोग किया जाता है –
दुनियाभर में केंचुओं की लगभग 2500 प्रजातियों की पहचान की गई है जिसमें से केंचुओं की पाँच सौ से अधिक प्रजाति भारत में पाई जाती है। विभिन्न प्रकार की मिट्टी में भिन्न-भिन्न प्रकार के केंचुए पाए जाते हैं। इसलिए स्थानीय मिट्टी में केंचुओं की स्थानीय प्रजाति का चयन कृमि खाद के लिए अत्यंत उपयोगी कदम है। किसी अन्य स्थानों से केंचुआ लाये जाने की जरूरत नहीं है। भारत में सामान्यतौर पर जिन स्थानीय प्रजाति के केंचुओं का उपयोग किया जाता है उनके नाम पेरियोनिक्स एक्सकैवेटस एवं लैम्पिटो मौरिटी है। इन केंचुओं को पाला जा सकता है या फिर इसे गड्ढों, टोकरी, तालाबों, कंक्रीट के बने नाद घर या किसी कंटेनर में सामान्य पद्धति से कृमि खाद बनाने में उपयोग में लाया जा सकता है।
 
स्थानीय केंचुओं को संग्रहित करने की विधि -
1. मिट्टी की सतह पर दिखाई पड़ने वाले कृमि के आधार पर केंचुआ युक्त मिट्टी की पहचान करना
2. 500 ग्राम गुड़ एवं 500 ग्राम ताजे पशु गोबर को दो लीटर पानी में घोलें तथा 1 मीटर X 1 मीटर के क्षेत्र पर उसका छिड़काव करें
3. भूसे या धान की पुआल या पुराने थैले से उसे ढ़क दें
4. 20 से 30 दिनों तक उसपर पानी का छिड़काव करें
5. पश्च प्रजनन और प्राचीन स्थानीय कृमियों का समूह उस स्थान पर एकत्रित हो जाता है जिसे जमा कर उपयोग में लाया जा सकता है।
 
कृमि खाद गड्ढे का निर्माण
कृमि खाद गड्ढे को किसी भी सुविधाजनक स्थान या घर के पिछवाड़े या खेत में निर्मित किया जा सकता है। यह किसी भी आकार का ईंट से निर्मित और उचित जल निकासी युक्त, एक गड्ढे वाला या दो गड्ढे वाला या टैंक हो सकता है। 2 मीटर X 1 मीटर X 0.75 मीटर के आकार वाले कक्ष या गड्ढे की आसानी से देखभाल की जा सकती है। जैव पदार्थ और कृषि अपशिष्ट की मात्रा के आधार पर गड्ढों और चैम्बर्स के आकार को निर्धारित किया जा सकता है। कृमि को चीटियों के हमले से बचाने के लिए कृमि गड्ढे की पैरापेट दीवार के केन्द्र में जल-खाना का होना जरूरी है।
 
चार कक्ष वाला टैंक/गड्ढा पद्धति
कृमि खाद गड्ढे निर्माण की चार कक्ष वाली पद्धति, केंचुओं को पूर्ण गोबर युक्त पदार्थ वाले एक कक्ष से पूर्व प्रसंस्कृत अपशिष्ट वाले दूसरे चैम्बर में आसानी से आवाजाही की सुविधा प्रदान करता है।
 
कृमि सतह का निर्माण
• लगभग 15 से 20 सेंमी मोटी कृमि सतह बेहतर, आर्द्र व नरम मिट्टी युक्त वास्तविक सतह होता है जो निचले स्तर पर स्थित होता है। यह ईंट के चूर्ण और बालू के 5 सेंमी वाले पतले सतह के ऊपर स्थित होता है।
• केंचुआ को गीली मिट्टी में रखा जाता जहाँ वह अपने आवास के रूप में रहता है। 15 से 20 सेंमी वाले मोटे कृमि बेड के साथ 2 सेंमी X 1 सेंमी X 0.75 सेंमी आकार के खाद गड्ढे में 150 केंचुओं को रखा जाता है।
• कृमि बेड के ऊपर यादृच्छिक रूप में ताजे गोबर का लेप लगाया जाता है। खाद के गड्ढे को सूखी हुई पत्तियों विशेषकर बड़े पत्ते, पुआल या कृषि जैव/अपशिष्ट पदार्थों से 5 सेंमी की ऊँचाई तक ढक दिया जाता है। अगले तीस दिनों तक गड्ढे को नम रखने के लिए उसपर नियमित रूप से पानी का छिड़काव किया जाता है।
• बेड न तो सूखी होनी चाहिए न ही नम। गड्ढे को नारियल या खजूर के पत्तों या पुराने जूट की बोड़ी से ढका जाना चाहिए ताकि पक्षियों से उनकी रक्षा की जा सके।
• प्लास्टिक शीट को बेड पर न बिछाया जाए क्योंकि वे गर्मी ग्रहण करते हैं। पहले 30 दिनों के बाद पशुओं का गीला गोबर या रसोई, होटेल या होस्टल से निकला कचरा, राख या या कृषि अपशिष्ट को लगभग 5 सेंमी की मोटाई तक छीटें। इसे हफ्ते में दो बार दोहराया जाए।
• सभी कार्बनिक अपशिष्ट को कुदाली की सहायता से समय-समय पर ऊपर-नीचे किया जाए या मिलाया जाए।
• गड्ढे में उचित मात्रा में आर्द्रता बनाए रखने के लिए नियमित रूप से जल का छिड़काव किया जाए। यदि मौसम बहुत अधिक शुष्क हो तो बार-बार पानी देकर गीला बनाए रखना चाहिए।
 
खाद के तैयार होने का समय
1. जब सामग्री पूरी तरह से मुलायम या चूर्ण बन जाती है और खाद का रंग भूरा हो जाता है तब खाद बनकर तैयार हो जाता है। यह काले रंग का दानेदार, हल्का वज़नी और उर्वरा शक्ति से युक्त होता है।
2. गड्ढे के आकार के आधार पर बेड के ऊपरी सिरे पर निर्धारित मात्रा में कृमि की उपस्थिति में 60 से 90 दिनों के भीतर कृमि खाद तैयार हो जाना चाहिए। इसके बाद कृमि खाद को गड्ढे से निकालकर उपयोग में लाया जा सकता है।
3. खाद से कृमियों को अलग करने के लिए नियत समय से दो या तीन दिन पहले पानी का छिड़काव बंद कर दें, उसके बाद बेड को खाली करें। ऐसा करने से 80 प्रतिशत तक कृमि बेड के निचली सतह पर जा बैठेते हैं।
4. कृमियों को चलनी का उपयोग कर अलग किया जा सकता है। केंचुए और गाढ़े पदार्थ जो चलनी के ऊपरी भाग में बने रहते हैं वे फिर बिन में वापस जाते और प्रक्रिया फिर से शुरू हो जाती है। खाद की गंध सोंधी होगी। यदि खाद से गंदी बदबू आ रही हो तो इसका मतलब है कि खमीर की प्रक्रिया उसके अंतिम चरण तक नहीं पहुँची है और जीवाणु संबंधित प्रक्रिया अभी भी जारी है। मटमैली बदबू आने का मतलब है कि खमीर की उपस्थिति या अत्यधिक गर्मी के कारण नाईट्रोजन की कमी हो जाती है। ऐसी स्थिति में खाद के ढेर को हवादार बनाए रखने या उसमें फिर से सूखी या कड़ी/ रेशेदार सामग्री मिलाने की प्रक्रिया प्रारंभ करें और ढेर को सूखा बनाए रखें। बोरी में बंद करने से पहले खाद के ढेले को फोड़कर छोटा-छोटा बना लें।
5. संचित सामग्री को धूप में ढ़ेर के रूप में रखें ताकि अधिकाँश कृमि ढ़ेर के निचले ठंडे आधार पर चले जाएँ।
6. दो या चार गड्ढे वाले पद्धति में, प्रथम चैम्बर में पानी डालना बंद कर दें ताकि कृमि स्वयं दूसरे चैम्बर में चले जाएँ। जहाँ कृमि के लिए अनुकूल वातावरण चक्रीय तरीके से बनाई रखी जाती है और चक्रीय आधार पर लगातार केचुएँ भी प्राप्त की जा सकेगी।
 
कृमि खाद के लाभ
• केंचुओं द्वारा कार्बनिक अपशिष्ट को शीघ्रता से तोड़कर टुकड़ों में विभाजित किया जा सकता है जो एक बेहतर संरचना में गैर विषैली पदार्थ के रूप में बदल जाता है। उसका उच्च आर्थिक मूल्य होता है, साथ ही, वह पौधों की वृद्धि में मृदा शीतक (स्वायल कंडिशनर) का कार्य भी करता है।
• कृमि खाद भूमि को उपयुक्त खनिज संतुलन प्रदान करता है तथा उसकी ऊर्वरा शक्ति में सुधार करता।
• कृमि खाद बड़े पैमाने पर रोगमूलक सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या को कम करता है और इस नजरिए से यह कूड़ा-करकट से अलग नहीं है।
• कृमि खाद अपने निष्पादन के दौरान पर्यावरणात्मक समस्याओं को भी कम करता है।
• ऐसा माना जाता है कि कृमि खाद समाज के गरीब और पिछड़े समुदाय के लिए कुटीर उद्योग का कार्य कर सकता है जो उन्हें दोहरा लाभ दिला सकता।
• यदि प्रत्येक गाँव के बेरोजगार युवक/महिला समूहों की सहकारी समिति बनाकर कृमि खाद का उत्पादन कर प्रस्तावित दर पर ग्रामीणों के बीच बिक्री की जाए तो यह एक समझदारीभरा संयुक्त उद्यम का रूप ले सकता है। इससे युवा वर्ग न केवल धन अर्जित कर सकेंगे अपितु सुस्थिर कृषि पद्धतियों के लिए उत्कृष्ट गुणपरक कार्बनिक खाद प्रदान कर समाज की मदद भी कर सकेंगे।

जैविक खाद निर्माण की विधि


जैव उर्वरक (Organic fertilizers) उन उर्वरकों को कहते हैं जो जन्तुओं या वनस्पतियों से प्राप्त होते हैं। जैसे खाद, कम्पोस्ट, आदि
जैविक खेती जीवों के सहयोग से की जाने वाली खेती के तरीके को कहते हैं। प्रकृति ने स्वयं संचालन के लिये जीवों का विकास किया है जो प्रकृति को पुन: ऊर्जा प्रदान करने वाले जैव संयंत्र भी हैं । यही जैविक व्यवस्था खेतों में कार्य करती है । खेतों में रसायन डालने से ये जैविक व्यवस्था नष्ट होने को है तथा भूमि और जल-प्रदूषण बढ़ रहा है। खेतों में हमें उपलब्ध जैविक साधनों की मदद से खाद, कीटनाशक दवाई, चूहा नियंत्रण हेतु दवा बगैरह बनाकर उनका उपयोग करना होगा । इन तरीकों के उपयोग से हमें पैदावार भी अधिक मिलेगी एवं अनाज, फल सब्जियां भी विषमुक्त एवं उत्तम होंगी । प्रकृति की सूक्ष्म जीवाणुओं एवं जीवों का तंत्र पुन: हमारी खेती में सहयोगी कार्य कर सकेगा ।
जैविक खाद निर्माण की विधि 
अब हम खेती में इन सूक्ष्म जीवाणुओं का सहयोग लेकर खाद बनाने एवं तत्वों की पूर्ति हेतु मदद ले सकते हैं । खेतों में रसायनों से ये सूक्ष्म जीव क्षतिग्रस्त हुये हैं, अत: प्रत्येक फसल में हमें इनके कल्चर का उपयोग करना पड़ेगा, जिससे फसलों को पोषण तत्व उपलब्ध हो सकें ।
दलहनी फसलों में प्रति एकड़ 4 से 5 पैकेट राइजोबियम कल्चर डालना पड़ेगा । एक दलीय फसलों में एजेक्टोबेक्टर कल्चर इतनी ही मात्रा में डालें । साथ ही भूमि में जो फास्फोरस है, उसे घोलने हेतु पी.एस.पी. कल्चर 5 पैकेट प्रति एकड़ डालना होगा ।
इस खाद से मिट्टी की रचना में सुधार होगा, सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या भी बढ़ेगी एवं हवा का संचार बढ़ेगा, पानी सोखने एवं धारण करने की क्षमता में भी वृध्दि होगी और फसल का उत्पादन भी बढ़ेगा । फसलों एवं झाड पेड़ों के अवशेषों में वे सभी तत्व होते हैं, जिसकी उन्हें आवश्यकता होती है :-
नाडेप विधि
       नाडेप का आकार :- लम्बाई 12 फीट     चौड़ाई 5 फीट    उंचाई 3 फीट आकार का गड्डा कर लें। भरने हेतु सामग्री :-  75 प्रतिशत वनस्पति के सूखे अवशेष, 20 प्रतिशत हरी घास, गाजर घास, पुवाल, 5 प्रतिशत गोबर, 2000 लिटर पानी ।
       सभी प्रकार का कचरा छोटे-छोटे टुकड़ों में हो । गोबर को पानी से घोलकर कचरे को खूब भिगो दें । फावडे से अच्छी तरह मिला दें ।
       विधि नंबर –1 – नाडेप में कचरा 4 अंगुल भरें । इस पर मिट्टी 2 अंगुल डालें । मिट्टी को भी पानी से भिगो दें । जब पुरा नाडेप भर जाये तो उसे ढ़ालू बनाकर इस पर4 अंगुल मोटी मिट्टी से ढ़ांप दें ।
       विधि नंबर-2- कचरे के ऊपर 12 से 15 किलो रॉक फास्फेट की परत बिछाकर पानी से भिंगो दें । इसके ऊपर 1 अंगुल मोटी मिट्टी बिछाकर पानी डालें । गङ्ढा पूरा भर जाने पर 4 अंगुल मोटी मिट्टी से ढांप दें ।
       विधि नंबर-3- कचरे की परत के ऊपर 2 अंगुल मोटी नीम की पत्ती हर परत पर बिछायें। इस खाद नाडेप कम्पोस्ट में 60 दिन बाद सब्बल से डेढ़-डेढ़ फुट पर छेद कर 15 टीन पानी में 5 पैकेट पी.एस.बी एवं 5 पैकेट एजेक्टोबेक्टर कल्चर को घोलकर छेदों में भर दें । इन छेदों को मिट्टी से बंद कर दें ।
जैविक खाद तैयार करना
जैविक खाद को घर में से बनाने के कुछ उपाय निम्नलिखित हैं :
1. रसोई के कचरे से खाद बनाने की विधि :
अनिवार्य रूप से, ग्रामीणों को रसोई के कचरे की कम पैमाने पर होने वाली एरोबिक अपघटन के बारे में बताया जाता है और उसे कैसे उपयोग में लाया जाए इस के लिए प्रशिक्षित किया जाता है । इस खाद को बनाने की विधि निम्नलिखितहैं :
·    कैंटीन, होटल आदि से रसोई कचरे इकठ्ठा कर लीजिए ।
·    लगभग 1 फुट गहरा गड्ढा खोदें और एकत्रीत कचरे को उसमें भर लें।
·    इन अपशिष्ट युक्त गड्ढे में, लगभग 250 ग्राम रोगाणुओं को डाला जाता है जो अपघटन बढ़ाने का काम करते हैं ।
·    पानी और मिट्टी की एक परत को साथ मिश्रित कर के कवर द्वारा बीछा दिया जाता है ताकि नमी की मात्रा को बनाए रखा जा सके ।
·    इसे लगभग 25-30 दिनों के लिए इसी तरह के रूप में छोड़ दिया जाता है और अपशिष्ट माइक्रोबियल अमीर खाद में परिवर्तित हो जाता है ।
    इस प्रक्रिया को हर 30 से 35 दिनों के बाद दोहराया जा सकता है ।
2.    सूखी जैविक उर्वरक:
सूखी जैविक खाद ,को इन में से किसी भी एक चीज़ से बनया जा सकता है - रॉक फॉस्फेट या समुद्री घास और इन्हे कई अवयवों के साथ मिश्रित किया जा सकता है।लगभग सभी जैव उर्वरक पोषक तत्वों की एक व्यापक सारणी प्रदान करते हैं, लेकिन कुछ मिश्रणों को विशेष रूप से नाइट्रोजन, पोटेशियम, और फास्फोरस की मात्रा को संतुलित रखने के लिए और साथ ही सूक्ष्म पोषक तत्व प्रदान करने के लिए तैयार किया जाता हैं।
  वर्तमान समय में अनेक वाणिज्यिक मिश्रण उपलबद्ध हैं तथा अलग-अलग संशोधन के मिश्रण से इन्हे खुद भी बना सकते हैं।
3.    तरल जैव उर्वरक
 इस खाद को चाय के पत्तो से या समुद्री शैवाल से बनाया जा सकता है । तरल उर्वरक का प्रयोग पौधो में पोषक तत्वों को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है इसे हर महीने या हर 2 सप्ताह में पौधो पर छिड़का जा सकता है । एक बैग स्प्रेयर की टंकी में तरल जैव उर्वरक के मिश्रण को भर कर पत्ते पर स्प्रे कर सकते है । 
4.    विकास बढ़ाने वाले उर्वरको का प्रयोग
 वह उर्वरक जो कि पौधों को मिट्टी से अधिक प्रभावी ढंग से पोषक तत्वों को अवशोषित कर सकने मे मदद करते हैं।सबसे आम विकास बढ़ाने वाला उर्वरक सिवार है जो समुद्री घास की राख से बनता है । यह सदियों से किसानों के द्वारा इस्तेमाल किया गया है ।
5.    पंचगाव्यम्
  ' पंच ' शब्द का अर्थ है पांच, और 'गाव्यम्’शब्द का अर्थ है गाय से प्राप्त होने वाला तत्व ।यह उर्वरक प्राचीन काल से भारतीयों द्वारा इस्तेमाल किया जाता रहा है. इस खाद को बनाने की विधि निम्नलिखित हैं :
·         एक मटका लें।
·         उसमें गाय का दूध, दही , मक्खन, घी , मूत्र, गोबर और निविदा नारियल डाल लें ।
·         लकड़ी की छड़ी की मद्द से अच्छी तरह से मिलाएं ।
·         तीन दिनों के लिए मिश्रण युक्त बर्तन को बंद कर के रखें।
·         तीन दिनों के बाद केले और गुड़ को उसमें डाल दें ।
·         इस मिश्रण को हर रोज (21 दिनों के लिए) मिलाते रहें, और यह सुनिश्चित करें की मिश्रण को मिलाने के बाद बर्तन को अच्छे से बंद कर लें.
·         21 दिनों के बाद मिश्रण से बु उत्पन्न होने लगती है ।
·         फिर पानी के 10 लीटर के मिश्रण के 200 मिलीलीटर तैयार मिश्रण मिला लें और पौधों पर स्प्रे करें।
जैविक खाद बनाने के लिए आम घरेलू खाद्य सामग्री
·         ग्रीन चाय - हरी चाय का एक कमजोर मिश्रण पानी में मिला कर पौधों पर हर चार सप्ताह के अन्तराल पर इस्तेमाल किया जा सकता है(एक चम्मच चाय में पानी के 2 गैलनध)।
·         जिलेटिन - जिलेटिन खाद पौधों के लिए एक महान नाइट्रोजन स्रोत हो सकता है , हालांकि ऐसा नहीं हैकी सभी पौधों नाइट्रोजन के सहारे ही पनपे। इसे बनाने के लिए  गर्म पानी की 1 कप में जिलेटिन कीएक पैकेज भंग कर के मिला ले, और फिर एक महीने में एक बार इस्तेमाल के लिए ठंडे पानी के 3 कपमिला लें ।
·         मछलीघर का पानी – 
मछलीघर टैंक से  पानी बदलते समय उसका  पानी पौधों को देने के काम आ सकता है । मछली अपशिष्ट एक अच्छ उर्वरक बनाता है।
इस प्रकार के खाद सस्ते और बनाने में आसान होते हैं और साथ ही बहुत प्रभावी भी होते हैं इनके प्रयोग से मिट्टी और फसल की गुणवत्ता में काफी सुधार होता है, जिन में से कुछ निम्नलिखित हैं :
खाद, मिट्टी की संरचना में सुधार लाता है, जिसके कारण मिट्टी में हवा का प्रवाह अच्छे से संमभ्व हो पाता है , जल निकासी में सुधार होता है और साथ ही साथ पानी के कारण होने वाली मिट्टी का कटाव भी कम कर हो जाता है ।
खाद मिट्टी में पोषक तत्वों को जोड़ देता है ताकी उन्हे पौधें आसानी से सोख़ सकें और उन्हे पोषक तत्वों को लेने में आसानी हो तथा फसल की पैदावार अच्छी हो जाये।
खाद मिट्टी की जल धारण करने की क्षमता में सुधार लाता है । इस कारण सूखे के समय में भी मिट्टी मे नमी बनी रहती है।
मिट्टी में खाद मिलाने से फसल में कीट कम लगते हैं और फसल की रोगप्रतीरोधक छमता में वृद्धिहोती हैं ।
खाद, रासायनिक उर्वरकों से कई अधीक फायदेमदं हैं । रासायनिक उर्वरकों पौधों को तो लाभ पहुँचातें हैं किन्तु इनसे मिट्टी को कोई फायदा नहीं पहुँचता है । ये आम तौर पर उसी ऋतु में पैदावार बढ़ाते है जिसमें इनका छिड़काव कियाजाता हैं । क्योंकि खाद मिट्टी को पोषक तत्व प्रदान करती है और मिट्टी की संरचना में सुधार लाती है , इस वज़ह से इसकेलाभकारी प्रभाव लंबे समय तक चलते है ।

गौ मूत्र फिनायल बनाने की विधि (केमिकल रहित)

             *सामग्री* गौ मूत्र      *एक लीटर* नीम पत्र    *200 ग्राम सूखा* पाइन आयल इमल्सीफायर युक्त     *50 ग्राम* उबाला हुआ पा...