Saturday 22 October 2011

गोमूत्र में है बड़े गुण

देहरादून। अब गोमूत्र भी बिक रहा है और वह भी पूरे पांच रुपये प्रति लीटर। जी हां, उत्तराखंड के टिहरी जिले में कोटेश्वरम के आयुर्वेदाचार्य स्वामी विषुदानंद महाराज के गोतीर्थाश्रम में दवाईयां बनाने के लिए न केवल आश्रम की डेढ़ सौ गांवों का मूत्र एकत्र किया जाता है, बल्कि पांच रुपये प्रति लीटर की दर पर इसे बाहर से भी खरीदा जाता है।
उत्तराखंड गोसंव‌र्द्धन समिति के संरक्षण में चलने वाले स्वामी विषुदानंद महाराज के गोविज्ञान अनुसंधान केंद्र के अलावा योग गुरु स्वामी रामदेव के पतंजलि योगपीठ हरिद्वार में भी गोमूत्र के अर्क तथा जड़ी-बूटियों से कई रोगों की दवाइयां बनाई जाती हैं। स्वामी विषुदानंद ने बताया कि उनके केंद्र ने गोमूत्र के अर्क तथा जड़ी-बूटियों से हृदयरोग के लिए गोतीर्थ हृदयरक्षक, उच्च तथा निम्न रक्तचाप के लिए गोतीर्थ रक्तचाम नियंत्रक, मधुमेह के लिए गोतीर्थ मधुमेहहारि, शरीर के भीतरी तथा बाहरी अंगों की सूजन दूर करने के लिए गोतीर्थ शोधहर, मोटापा घटाने के लिए गोतीर्थ मेदोहर अर्क, जोड़ों के दर्द, गठिया, आर्थराइटिस के लिए गोतीर्थ पीडाहर, पेट के विकारों के लिए गोतीर्थ उदर रोग हर, खुजली और फोड़े, फुंसियों, दाद, रिंगवर्म तथा रक्त दोष जन्य विकारों के लिए गोतीर्थ अर्क, गुर्दो की कार्यप्रणाली तथा गुर्दे के रोगों के लिए गोतीर्थ लीवर टानिक, एड्स और यौन रोगों के लिए गोतीर्थ यौवन रक्षक अर्क एवं बवासीर के लिए गोतीर्थ बवासीर नाशक सहित लगभग 24 औषधियों का निर्माण किया है।
स्वामी विषुदानंद ने दावा किया कि गोमूत्र अर्क तथा जड़ी-बूटी मिश्रित औषधियों के सेवन से असाध्य और लाईलाज बीमारियां ठीक हो जाती हैं तथा ये औषधियां काफी सस्ती भी हैं जिससे गरीब लोग भी इनसे उपचार कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि इन पवित्र औषधियों के सेवन से केवल शरीर की रक्षा ही नहीं होती बल्कि तन, मन, विचार, विकार तथा संस्कार सभी परिशुद्ध हो जाते हैं। लोगों में नई ऊर्जा का संचार होता है तथा मानसिक शांति की अनुभूति होती है।
गोमूत्र में फासफोरस, पोटाश, लवण, नाईट्रोजन, यूरिक अम्ल, हारमोन, साइटोकाइन्स तथा जीवाणु एवं विषाणु नाशक तत्व होते हैं। गव्य रसायन शास्त्र के मतानुसार गोमूत्र में नाईट्रोजन, गंधक, अमोनिया, तांबा, फास्फोरस, कार्बोलिक अम्ल, लेक्टोज, विटामिन ए, बी, सी, डी तथा ई, एन्जाइम, हिम्यूरिक अम्ल तथा क्रियेटिव तथा स्वर्णक्षार आदि तत्व पाए जाते हैं। दुधारू गाय के मूत्र में लेक्टोज भी मौजूद रहता है जो हृदय और मस्तिष्क के रोगों में बहुत लाभकारी है। आठ महीने की गाभन गाय के मूत्र में पाचक रस [हार्मोन्स] अधिक होते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार गोमूत्र, लघु अग्निदीपक, मेघाकारक, पित्ताकारक तथा कफ और बात नाशक है और अपच एवं कब्ज को दूर करता है। इसका उपयोग प्राकृतिक चिकित्सा में पंचकर्म क्रियाएं तथा विरेचनार्थ और निरूहवस्ती एवं विभिन्न प्रकार के लेपों में होता है। आयुर्वेद में में संजीवनी बूटी जैसी कई प्रकार की औषधियां गोमूत्र से बनाई जाती हैं। गौमूत्र के प्रमुख योग गोमूत्र क्षार चूर्ण कफ नाशक तथा नेदोहर अर्क मोटापा नाशक हैं।
प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य हरिओम शास्त्री के अनुसार गोमूत्र श्वांस, कास, शोध, कामला, पण्डु, प्लीहोदर, मल अवरोध, कुष्ठ रोग, चर्म विकार, कृमि, वायु विकार मूत्रावरोध, नेत्र रोग तथा खुजली में लाभदायक है। गुल्य, आनाह, विरेचन कर्म, आस्थापन तथा वस्ति व्याधियों में गोमूत्र का प्रयोग उत्तम रहता है। गोमूत्र अग्नि को प्रदीप्त करता है, क्षुधा [भूख] को बढ़ाता है, अन्न का पाचन करता है एवं मलबद्धता को दूर करता है। गोमूत्र से कुष्ठादि चर्म रोग भी दूर हो सकते हैं तथा कान में डालने से कर्णशूल रोग खत्म होता है और पाण्डु रोग को भी गोमूत्र समाप्त करने की क्षमता रखता है। इसके अलावा आयुर्वेदिक औषधियों का शोधन गोमूत्र में किया जाता है और अनेक प्रकार की औषधियों का सेवन गोमूत्र के साथ करने की सलाह दी जाती है। आयुर्वेद में स्वर्ण, लौह, धतूरा तथा कुचला जैसे द्रव्यों को गोमूत्र से शुद्ध करने का विधान है। गोमूत्र के द्वारा शुद्धीकरण होने पर ये द्रव्य दोषरहित होकर अधिक गुणशाली तथा शरीर के अनुकूल हो जाते हैं। रोगों के निवारण के लिए गोमूत्र का सेवन कई तरह की विधियों से किया जाता है जिनमें पान करना, मालिश करना, पट्टी रखना, एनीमा और गर्म सेंक प्रमुख हैं।
ब्रिटेन के डा. सिमर्स के अनुसार गोमूत्र खून में मौजूद दूषित कीटाणुओं का नाश करता है तथा पुराने घावों बढ़ते हुए मवाद [पीब] को रोकता है और यह बालों के लिए एक कंडीशनर की तरह उपयोगी है। दिल संबंधित रोगों, टीबी, और पेट की बीमारियों तथा गुर्दे संबंधी खराबियों में गोमूत्र और गाय के गोबर का मिश्रित इस्तेमाल काफी लाभकारी है। गुर्दे में पथरी के लिए 21 दिनों तक लगातार गोमूत्र का सेवन बड़ा लाभकारी सिद्ध होता है।
अमेरिका के डा. क्राफोड हैमिल्टन का दावा है कि गोमूत्र के प्रयोग से हृदयरोग दूर होते हैं और पेशाब खुलकर आता है। उनका कहना है कि कुछ दिन गोमूत्र के सेवन से धमानियां प्रसारित होती हैं, जिससे रक्त का दबाव स्वाभाविक होने लगता है। गोमूत्र से भूख बढ़ती है और पुराने गुर्दा रोग [रीनल फेल्योर व किडनी फेल्योर] की कारगर दवा है।
आयुर्वेदाचार्य बालकृष्ण आचार्य के अनुसार पंचगव्य चिकित्सा प्रणाली के द्वारा रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने और सुदृढ़ करने हेतु आधुनिक तकनीकों द्वारा अनेक अनुसंधान किए गए हैं। इसी श्रृंखला में गोमूत्र का चूहों की रोगप्रतिरोधी क्षमता पर प्रभाव का अध्ययन किया गया जिसमें पाया गया कि गोमूत्र में कुछ ऐसे रसायन तत्व मौजूद हैं जो प्रतिरोधी तंत्र को मजबूत करते हैं और शरीर की जीवनी कैंसररोधी गुण भी होते हैं।
स्वामी विषुदानंद महाराज ने बताया कि गौ विज्ञान अनुसंधान केंद्र नागपुर द्वारा किए गए अनुसंधान में पाया गया कि गोमूत्र कैंसर के उपचार में भी लाभकारी है तथा साथ ही कैंसर के उपचार में इस्तेमाल होने वाली दवाईयों को भी प्रभावशाली बनाता है। उन्होंने बताया कि भारतीय चिकित्सा पद्धति में परंपरागत ढंग से उपयोग होने वाले तरीके विशुद्ध वैज्ञानिकता पर आधारित हैं। पंचगव्य चिकित्सा पद्धति केवल अपने देश में ही नहीं प्रभावी है, बल्कि इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन भी अपने स्तर पर प्रभावी कदम उठाने की तैयारी कर रहा है।
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार टीबी जैसे रोग में इन दवाओं के साथ गोमूत्र का उपयोग करने पर न केवल दवा की कम मात्रा से ही रोग नष्ट हो जाता है, बल्कि औषधि लेने के कार्यकाल में भी काफी कमी आ जाती है जिससे समय और धन दोनों की बचत होती है।
गोतीर्थाश्रम के आचार्य ने बताया कि गोमूत्र के तरह गोबर में भी अनेक औषधीय गुण मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि इटली के अधिकांश सेनेटारियमों में गोबर का प्रयोग किया जाता है वहां हैजा तथा अतिसार के रोगियों में ताजा पानी में गोबर का रस घोलकर देना दोषरहित चिकित्सा मानी जाती है। जिस तालाब में हैजे के कीटाणु हो जाते हैं, उसमें गोबर डालने से उनका सफाया हो जाता है। उन्होंने बताया कि इंग्लैंड के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो जीई बीगेंड ने गोबर के अनेक प्रयोगों से सिद्ध कर दिया है कि गाय के ताजे गोबर में तपेदिक तथा मलेरिया के कीटाणु मर जाते हैं। उन्होंने बताया कि ताजे गोबर का रस पंचगव्य का मुख्य अंश है जिसके प्रयोग से देह, मन और बुद्धि के विकारों का नाश होता है। उन्होंने कहा कि गोपालन के द्वारा उनके दूध, घी, मक्खन तथा उनसे बने पदार्थो एवं गोमूत्र और गोबर से बनी औषधियों से देश के करोड़ लोग स्वस्थ्य और निरोग बनने के साथ ही इनके व्यवसाय से लोगों की आर्थिकी मजबूत होगी साथ ही देश भी अंतरराष्ट्रीय अंतर पर इन औषधियों का व्यवसाय कर आर्थिक रूप से मजबूत हो सकेगा।

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